मेवाड़ का इतिहास III (राणा सांगा)

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रायमल (1473 – 1509)

  • इन्होंने अपने भाई उदा को जावर तथा दडिमपुर के युद्धों में हराया।
  • इन्होंने मालवा के गयास शाह को हराया।
  • इन्होंने एकलिंग मंदिर का वर्तमान स्वरूप बनवाया था।
  • चित्तौड़ में अद्भुत (शिव) मंदिर का निर्माण करवाया जिसे अदबद जी का मंदिर भी कहा जाता है।
  • इनकी बहन रमाबाई ने जावर में रामास्वामी मंदिर का निर्माण करवाया था।
  • इनकी रानी शृंगार कंवर ने घोसुण्डी (चित्तौड़) में एक बावड़ी का निर्माण करवाया था।

पृथ्वीराज

  • यह रायमल का का बेटा था।
  • इसे “उड़णा राजकुमार” भी कहा जाता है।
  • इनकी रानी तारा के कारण अजमेर किले का नाम तारागढ़ पड़ गया।
  • पृथ्वीराज की छतरी कुम्भलगढ़ में बनी हुई है जो 16 खम्भों की है।

जयमल

  • ये रायमल के पुत्र थे।
  • ये सोलंकियों के खिलाफ लड़ते हुए मारे गए।

सांगा / संग्राम सिंह (1509 – 28)

  • ये रायमल के पुत्र थे। अपने भाइयों पृथ्वीराज और जयमल से विवाद होने के बाद सांगा को सेवन्त्री गांव में बिदा जैतमालोत ने बचाया था।
  • श्रीनगर (अजमेर) के कर्मचन्द पंवार ने सांगा को शरण दी।
  • रायमल की मृत्यु के बाद सांगा मेवाड़ का राजा बना।
  • सांगा के राजतिलक के समय दिल्ली के सुल्तान सिकंदर लोदी, मालवा के राजा नासिरशाह तथा गुजरात के राजा महमूद शाह बेगड़ा थे।
  • राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी को खातोली के युद्ध (1517 ई.) तथा बाड़ी के युद्ध (1518 ई.) में हराया।
  • ईडर के उत्तराधिकार संघर्ष में राणा सांगा ने भारमल तथा गुजरात के राजा मुजफ्फर शाह II दोनों को हराया और रायमल को ईडर का राजा बनाया।

मेवाड़ का इतिहास III

* यह युद्ध राणा सांगा तथा मालवा के राजा महमूद खिलजी II के बीच हुआ।
* राणा सांगा ने महमूद खिलजी II के विद्रोही चंदेरी के मेदिनीराय को शरण दी थी और उसे गागरौन का किला दे दिया था।
* इस युद्ध में सांगा की जीत हुई। हरिदास चारण ने महमूद खिलजी II को गिरफ्तार कर लिया। अतः सांगा ने उसे 12 गांव दिए थे।

बयाना का युद्ध

* यह युद्ध राणा सांगा तथा बाबर के बीच हुआ।
* इस समय बयाना का किला मेहंदी ख्वाजा के पास था।
* इसमें बाबर का सेनापति सुल्तान मिर्जा था।
* इस युद्ध में राणा सांगा की जीत हुई।

खानवा का युद्ध

  • यह युद्ध 17 मार्च 1527 को हुआ लेकिन वीर विनोद के अनुसार यह 16 मार्च को राणा सांगा तथा बाबर के बीच हुआ।

खानवा का युद्ध

 

 

  1. दोनों की साम्राज्य विस्तार नीति
  2. सांगा ने दिल्ली सल्तनत के 200 गावों पर अधिकार कर लिया।
  3. सांगा ने बयाना किले पर अधिकार कर लिया।
  4. सांगा अफगानों के साथ गठबंधन बना रहा था (महमूद लोदी)
  5. बाबर ने सांगा पर वादा खिलाफी का आरोप लगाया।
  • बाबर ने युद्ध से पहले जिहाद की घोषणा की। उसने मुस्लिम व्यापारियों का तमगा कर हटा दिया और उसने शराब नहीं पीने की शपथ ली।
  • सांगा ने राजस्थान के लगभग सभी राजाओं को पत्र (पाती परवन) लिखे तथा खानवा के युद्ध में सहायता के लिए बुलाया।

  • घायल होने के कारण सांगा को युद्ध भूमि से बाहर जाना पड़ा अतः झाला अज्जा ने युद्ध का नेतृत्व किया।
  • युद्ध में बाबर की जीत हुई तथा उसने “गाजी” की उपाधि धारण की।

 

 

  1. सांगा की सेना में एकता की कमी थी तथा उसकी सेना अलग-अलग सेनापतियों के नेतृत्व में लड़ रही थी।
  2. बयाना युद्ध के बाद सांगा ने बाबर को युद्ध की तैयारी का पर्याप्त समय दे दिया था।
  3. घायल सांगा स्वयं युद्ध के मैदान में चला गया था।
  4. सांगा के कुछ साथियों ने उसने साथ विश्वासघात किया तथा युद्ध के बीच में ही बाबर से मिल गए। जैसे – रायसीन का सलहदी तंवर और नागौर के खानजादे मुस्लिम।
  5. बाबर का तोपखाना तथा तुलगुमा युद्ध प्रणाली।
  6. मुग़ल सैनिकों ने घोड़ों का प्रयोग किया था जबकि राजपूतों ने हाथियों का प्रयोग किया था।
  7. राजपूतों की तुलना में मुगलों ने हल्के हथियारों का प्रयोग किया।

 

  1. अफगानों तथा राजपूतों को हारने के बाद बाबर के लिए भारत में राज करना आसान हो गया।
  2. खानवा अंतिम युद्ध था जिसमें राजस्थान के राजपूत राजाओं में एकता दिखाई दी।
  3. सांगा अंतिम राजपूत राजा था जिसने दिल्ली को प्रत्यक्ष चुनौती दी।
  4. इस युद्ध में राजपूतों की सामरिक कमजोरियां उजागर हो गई।
  5. सांगा के बाद बड़े हिन्दू राजा नहीं बचे जिससे हिन्दू कला एवं संस्कृति का नुकसान हुआ।
  6. इस युद्ध ने मुगलों की राजपूतों के प्रति भविष्य की नीति का निर्धारण किया तथा कालांतर में अकबर ने संघर्ष के स्थान पर सहयोग की नीति अपनाई थी।

राणा सांगा की उपाधियाँ

  1. हिन्दूपत
  2. सैनिकों का भग्नावशेष

***बाबरनामा के अनुसार सांगा के दरबार में 7 राजा, 9 राव तथा 104 सरदार थे।

भोजराज

  • ये सांगा के पुत्र थे।
  • मीराबाई इनकी पत्नी थी।

रतनसिंह

  • ये सांगा के पुत्र थे।
  • सांगा की मृत्यु के बाद ये मेवाड़ के राजा बने।
  • ये बूंदी के सूरजमल के खिलाफ लड़ते हुए मर गए।

विक्रमादित्य (1531 – 36 ई.)

  • इनके पिता का नाम सांगा तथा माता का नाम कर्मावती था जो इनकी संरक्षिका बनी।
  • 1533 ई. में गुजरात के बहादुरशाह ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया।
  • कर्मावती ने रणथम्भौर का किला देकर संधि कर ली।
  • 1534 – 35 में बहादुरशाह ने मेवाड़ पर पुनः आक्रमण कर दिया। कर्मावती ने मुग़ल बादशाह हुमायूँ के पास राखी भेजी तथा सहायता मांगी।
  • 1535 ई. में चित्तौड़ का दूसरा साका हुआ। रानी कर्मावती ने जौहर किया (पुर ताम्रपत्र भीलवाड़ा से इस जौहर की जानकारी) और देवलिया के बाघसिंह के नेतृत्व में केसरिया किया गया। इसे देवलिया दीवान भी कहा जाता है। पांडुपोल में बाघसिंह की छतरी है।
  • बनवीर को मेवाड़ का प्रशासक बनाया गया। बनवीर उडणा राजकुमार पृथ्वीराज की दासी का बेटा था।
  • बनवीर ने विक्रमादित्य की हत्या कर दी। वह उदयसिंह को भी मरना चाहता था लेकिन पन्ना धाय ने अपने बेटे चन्दन का बलिदान देकर उसे बचा लिया।
  • कुम्भलगढ़ के आशा देवपुरा ने पन्ना धाय तथा उदयसिंह को शरण दी।

उदयसिंह (1537 – 72 ई.)

  • मालवी के युद्ध 1540 ई. में उदयसिंह ने बनवीर को हरा दिया।
  • इन्होंने 1559 ई. में उदयपुर की स्थापना की। यहाँ पर उदयसागर झील तथा मोतिनगरी महल का निर्माण करवाया गया।
  • 1567 – 68 ई. में अकबर ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया। उदयसिंह गिर्वा की पहाड़ियों में चला गया। जयमल और पत्ता ने चित्तौड़ किले का मोर्चा संभाला।
  • जयमल मेड़ता का राजा था तथा अकबर ने 1562 ई. में मेड़ता पर अधिकार कर लिया। पत्ता आमेट (राजसमंद) का सामंत था जो मेवाड़ रियासत का प्रथम श्रेणी का ठिकाना था।
  • 1568 ई. में चित्तौड़ का तीसरा साका हुआ। रानी फूलकंवर ने जौहर किया। फूलकंवर जयमल की बहन तथा पत्ता की रानी थी। जयमल तथा पत्ता के नेतृत्व में केसरिया किया गया।
  • जयमल ने कल्ला राठौड़ के कन्धों पर बैठकर युद्ध किया। कल्ला राठौड़ को “चार हाथों का देवता” कहा जाता है।
  • पत्ता की छतरी रामपोल में तथा जयमल और कल्ला राठौड़ की छतरियां हनुमानपोल तथा भैरवपोल के बीच है।
  • 25 फरवरी 1568 को अकबर ने चित्तौड़ किले पर अधिकार कर लिया तथा चित्तौड़ में 30 हजार लोगों का कत्लेआम किया।
  • अकबर ने यहाँ पर “एलची” नामक सिक्का चलवाया।
  • अकबर ने जयमल तथा पत्ता की मूर्तियां आगरा की किले में लगवाई। फ़्रांसिसी यात्री बर्नियर ने अपनी पुस्तक “Travels in the Mughal Empire” में इन मूर्तियों का जिक्र किया।
  • बीकानेर के जूनागढ़ किले में भी जयमल और पत्ता की मूर्तियां लगी हुई है।
  • 28 फरवरी 1572 को गोगुन्दा में होली के दिन उदयसिंह की मृत्यु हो गई। उदयसिंह की छतरी गोगुन्दा में बनी है।

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