आपका हमारी वेबसाइट rajasthanigyan.com में स्वागत है। आज हम मेवाड़ का इतिहास 2 (राणा कुम्भा) के बारे में विस्तार से अध्ययन करेंगे। हमारी इस वेबसाइट पर आपको राजस्थान राज्य की सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में आने वाले महत्वपूर्ण Topics की आसान और सरल भाषा में जानकारी मिलती है।
राणा कुम्भा (1433 – 68)
- इनके पिता का नाम मोकल तथा माता का नाम सौभाग्यवती था।
- रणमल इनका संरक्षक था। इनकी सहायता से कुम्भा ने अपने पिता की हत्या का बदला लिया।
- मेवाड़ दरबार में रणमल का प्रभाव बढ़ गया और रणमल ने सिसोदियों के नेता राघवदेव (चुण्डा का भाई) को मरवा दिया।
- चूंडा को वापस बुलाया गया और भारमली की सहायता से रणमल को मार दिया गया।
- चूंडा ने राठौड़ों की राजधानी मंडौर पर कब्ज़ा कर लिया तथा रणमल से बेटे जोधा ने बीकानेर के पास कहुनी नामक गांव में शरण ली।
- यह सन्धि 1453 ई. राणा कुम्भा और जोधा के बीच हुई।
- इस सन्धि के द्वारा जोधा को मारवाड़ वापस दे दिया गया तथा सोजत को मारवाड़ तथा मेवाड़ की सीमा बनाया गया।
- यह युद्ध 1437 ई. में मेवाड़ के राजा राणा कुम्भा और मालवा के राजा महमूद खिलजी I के बीच हुआ
- इस युद्ध का कारण कुम्भा द्वारा महमूद खिलजी के विद्रोही उमर खां की सहायता करना था। उमर खां ने सारंगपुर पर अधिकार कर लिया था।
- इस युद्ध को कुम्भा जीत गया और जीत की याद में चित्तौड़ में विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया।
- कुम्भा ने नागौर के राजा मुजाहिद खान ने खिलाफ शम्स खान की सहायता की थी लेकिन कुछ समय बाद शम्स खान ने कुम्भा के खिलाफ विद्रोह कर दिया और गुजरात के राजा कुतुबुद्दीन के पास चला गया।
- कुम्भा ने शम्स खान तथा कुतुबुद्दीन शाह दोनों को हराया।
- यह संधि 1456 ई. में मालवा के राजा महमूद खिलजी तथा गुजरात के राजा कुतुबुद्दीन शाह के बीच हुई।
- इस संधि का उद्देश्य कुम्भा को हराकर मेवाड़ का विभाजन करना था।
- यह युद्ध 1457 ई. में हुआ।
- इस युद्ध में कुम्भा ने मालवा तथा गुजरात की संयुक्त सेना को हराया।
- कुम्भा ने सिरोही को सहसमल देवड़ा को भी हराया।
राणा कुम्भा : सांस्कृतिक उपलब्धियां
स्थापत्य कला
- विजय स्तम्भ
- कीर्ति स्तम्भ
प्रमुख किले
कुम्भलगढ़ किला (राजसमंद)
यह मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी थी।
इसे मेवाड़-मारवाड़ का सीमा प्रहरी भी कहा जाता है।
इसका वास्तुकार मंडन था तथा इसकी प्रशस्ति का लेखक महेश भट्ट था।
इसका सबसे ऊपरी भाग कटारगढ़ महल है जो कि कुम्भा का निजी आवास था। यह से मेवाड़ पर अच्छी तरह से नजर रखी जा सकती थी अतः इसे “मेवाड़ की आँख” कहा जाता है।
अचलगढ़ किला (सिरोही)
1453 ई. में कुम्भा ने इस किले का पुनर्निर्माण करवाया।
इस किले में कुम्भा तथा उसके पुत्र उदा की मूर्ति है।
बसंतगढ़ दुर्ग, सिरोही
मचान दुर्ग, सिरोही – मेर जनजाति पर नियंत्रण हेतु इसका निर्माण करवाया गया।
भोमट दुर्ग, सिरोही – भील जनजाति पर नियंत्रण हेतु इसका निर्माण करवाया गया।
प्रमुख मंदिर
कुम्भास्वामी मंदिर – चित्तौडगढ़, कुम्भलगढ़, अचलगढ़
कुंथुनाथ जैन मंदिर
शांतिनाथ जैन मंदिर (शृंगार चंवरी मंदिर) – निर्माणकर्ता – वेल्का भंडारी
रणकपुर जैन मंदिर – निर्माणकर्ता – धारणकशाह
साहित्य कला
राणा कुम्भा की पुस्तकें
- सुधा प्रबंध
- कामराज रतिसार
- संगीत सुधा
- संगीत मीमांसा
- संगीत क्रम दीपिका
- संगीत राज
राणा कुम्भा की टीकाएँ
- गीत गोविन्द (जयदेव) – “रसिक प्रिया”
- संगीत रत्नाकर (सारंगधर)
- चंडी शतक (बाणभट्ट)
दरबारी विद्वान
कान्ह व्यास – इन्होंने एकलिंग महात्म्य नामक पुस्तक लिखी। इसका प्रथम भाग राजवर्णन है जो कुम्भा द्वारा लिखा गया।
मेहाजी – इन्होंने तीर्थमाला पुस्तक लिखी जिसमें 120 तीर्थों की जानकारी है।
मंडन – वास्तुकार, देवमूर्तिप्रकरण, राज वल्लभ, रूप मंडन (मूर्तिकला की जानकारी), कोदंड मंडन (धनुष की जानकारी)
नाथा – वास्तुमंजरी
गोविन्द – द्वार दीपिका, उद्धार धोरिणी, कलानिधि (मंदिर शिखर निर्माण की जानकारी), सर समुच्चय (आयुर्वेद की जानकारी)
हीरानन्द मुनि – ये राणा कुम्भा के गुरु थे।
तिलाभट्ट
जैन विद्वान – सोमदेव सूरी, सुन्दर सूरी, जयशेखर, भुवनकीर्ति
राणा कुम्भा : उपाधियाँ
- हिन्दू सुरताण
- अभिनव भरताचार्य/ नव्य भरत
- वीणावादन प्रविणेन
- राणा रासो
- हाल गुरु
- चाप गुरु
- परम भागवत
- आदि वराह