आपका हमारी वेबसाइट rajasthanigyan.com में स्वागत है। आज हम अजमेर का इतिहास II के बारे में विस्तार से अध्ययन करेंगे। हमारी इस वेबसाइट पर आपको राजस्थान राज्य की सभी exams में आने वाले महत्वपूर्ण Topics की आसान और सरल भाषा में जानकारी मिलती है।
पृथ्वीराज III (1177 – 1192 ई.)
- इनके पिता का नाम सोमेश्वर तथा माता का नाम कर्पूरी देवी था।
- ये 11 वर्ष की आयु में राजा बन गए और इनकी माता कर्पूरी देवी इनकी संरक्षिका बनी।
- इसने अपने चचेरे भाइयों नागार्जुन और अपारगांग्ये का विद्रोह दबाया।
- जनपति सूरी के साहित्य के अनुसार पृथ्वीराज III ने मथुरा, अलवर तथा भरतपुर क्षेत्रों में भंडानक जनजाति का विद्रोह दबाया।
महोबा का युद्ध, 1182 ई.
- यह युद्ध पृथ्वीराज चौहान III तथा परमर्दिदेव चंदेल के बीच हुआ। इस युद्ध में पृथ्वीराज की विजय हुई तथा उसने पंजुनराय को महोबा का प्रशासक बना दिया।
- परमर्दिदेव चंदेल के सेनापति आल्हा और उदल दोनों इस युद्ध में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए।
नागौर का युद्ध, 1184 ई.
- यह युद्ध पृथ्वीराज III और गुजरात के चालुक्य राजा भीम II के बीच हुआ।
- जगदेव प्रतिहार ने इन दोनों के बीच सन्धि करवा दी।
चौहान – गहढ़वाल विवाद
यह विवाद कन्नौज के राजा जयचंद तथा पृथ्वीराज III के बीच था।
इस विवाद के कई कारण थे जो निम्न है –
- दोनों दिल्ली पर अधिकार करना चाहते थे और पृथ्वीराज III ने दिल्ली पर अपना अधिकार जमा लिया।
- जयचंद पृथ्वीराज III के खिलाफ परमर्दिदेव चंदेल की सहायता कर रहा था।
- पृथ्वीराज III ने जयचंद की बेटी संयोगिता का अपहरण कर उससे विवाह कर लिया। हालाँकि दसरथ शर्मा ने अपनी पुस्तक “The Early Chauhan Dynasty” में इस कहानी को ऐतिहासिक तथ्य के रूप में स्वीकार किया है।
तराइन का प्रथम युद्ध, 1191 ई.
यह युद्ध पृथ्वीराज III तथा मोहम्मद गौरी (गजनी) के बीच हुआ।
इस युद्ध में पृथ्वीराज III की विजय हुई तथा दिल्ली के गोविंदराज ने गौरी को घायल कर दिया।
इस युद्ध के निम्नलिखित कारण थे –
- गौरी अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था।
- चौहानों तथा गजनी के राजाओं में लम्बे समय से दुश्मनी चली आ रही थी।
- गौरी ने तबर हिन्द (आज का भटिंडा) पर अधिकार कर लिया।
तराइन का द्वितीय युद्ध, 1192 ई.
इस युद्ध में गौरी पृथ्वीराज III से जीत गया।
सिरसा के पास सरस्वती नामक स्थान से पृथ्वीराज चौहान को गिरफ्तार किया गया और मार दिया।
हसन निज़ामी ने अपनी पुस्तक “ताज-उल-मासिर” में लिखा है कि पृथ्वीराज चौहान ने कुछ दिनों तक गौरी के अधीन शासन किया था।
- पृथ्वीराज चौहान III के अपने पड़ोसी राज्यों के साथ विवाद थे। अतः किसी भी राजा ने गौरी के खिलाफ उसकी सहायता नहीं की।
- पृथ्वीराज चौहान III की सेना गौरी के मुकाबले कम थी क्योंकि उसके अधिकतर सेनापति अन्य सीमाओं पर व्यस्त थे।
- तराइन के प्रथम युद्ध के बाद पृथ्वीराज चौहान III ने गौरी को युद्ध की तैयारी का पर्याप्त समय दे दिया।
- गौरी एक अच्छा सेनापति था तथा उसने अपनी कूटनीति से पृथ्वीराज चौहान III को हरा दिया।
- तुर्कों ने घोड़ों का प्रयोग किया वहीं राजपूतों ने हाथियों का प्रयोग किया।
- तुर्क सैनिकों ने राजपूत सैनिकों की अपेक्षा हल्के हथियारों का प्रयोग किया।
- पृथ्वीराज चौहान III की हार के बाद गौरी के उत्तराधिकारियों के लिए भारत में राज करना आसान हो गया।
- राजपूतों की उभरती हुई राजनैतिक महत्वकांक्षायें समाप्त हो गई और पृथ्वीराज के बाद कोई भी राजपूत राजा दिल्ली पर अधिकार नहीं कर पाया।
- तुर्कों की जीत के बाद भारत में विदेशी शासन की शृंखला प्रारंभ हो गई थी जो 1947 तक लगातार चलती रही।
- भारत में “इंडो – इस्लामिक” नामक साझी संस्कृति का उदय हुआ।
- भारत में सूफी तथा भक्ति आंदोलन प्रारम्भ हुए।
- तुर्कों ने विद्या के केंद्रों को नष्ट किया जिससे शिक्षा का पतन हुआ।
चंदबरदाई
जयानक
वागीश्वर जनार्दन
विद्यापति गौड़
विश्वरूप
आशाधर
गोविंदराज
- इसने तुर्कों की अधीनता स्वीकार कर ली तथा इसे अजमेर का राजा बना दिया गया।
- इसके चाचा हरिराज ने इसे हटा दिया अतः ये रणथम्भौर चला गया।
हरिराज
- इसके सेनापति चतरराज ने दिल्ली पर आक्रमण किया लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा।
- कुतुबद्दीन ऐबक ने अजमेर पर आक्रमण किया तथा उसने हरिराज को हरा दिया और हरिराज ने आत्महत्या कर ली।