आपका हमारी वेबसाइट rajasthanigyan.com में स्वागत है। आज हम राजस्थान लोकायुक्त तथा इसके विभिन्न प्रावधानों तथा कार्यों के बारे में विस्तार से अध्ययन करेंगे। हमारी इस वेबसाइट पर आपको राजस्थान राज्य की सभी exams में आने वाले महत्वपूर्ण Topics की आसान और सरल भाषा में जानकारी मिलती है। राजस्थान लोकायुक्त एवं उनसे सम्बंधित जानकारी सामान्य ज्ञान का एक बहुत ही महत्वपूर्ण Topic है। जिसका हम अध्ययन करेंगे।
इतिहास
लोकपाल/लोकायुक्त ओम्बड्समैन की अवधारणा पर आधारित है। ओम्बड्समैन एक ऐसा व्यक्ति या संस्था होती है जो नौकरशाही की शक्तियों का दुरुपयोग होने पर नागरिकों द्वारा की गई शिकायतों की जांच करता है। इसे 1809 में सबसे पहले स्वीडन ने ओम्बड्समैन अवधारणा को अपनाया।
भारत में लोकपाल/लोकायुक्त शब्द का पहली बार प्रयोग 1963 में डॉ एल. एम. सिंघवी ने किया। 5 जनवरी 1966 को मोरारजी देसाई की अध्यक्षता में ”प्रथम प्रशासनिक सुधार” आयोग का गठन किया गया जिसने केंद्र में लोकपाल तथा राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति की सिफारिश की।
राजस्थान लोकायुक्त
राजस्थान का लोकायुक्त एक संविधिक तथा परामर्शकारी संस्था है। यह एक स्वतंत्र संस्था है जिसका क्षेत्राधिकार संपूर्ण राजस्थान है. यह एक स्वायत्तशासी संस्था है। इसके कार्यों में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है।
राजस्थान में लोकायुक्त की सिफारिश हरिशचंद्र माथुर की अध्यक्षता में 1963 में गठित ‘प्रशासनिक सुधार समिति’ ने की। इसके आधार पर राजस्थान में लोकायुक्त एवं उपलोकायुक्त अधिनियम, 1973 पारित किया गया। 28 अगस्त 1973 को राजस्थान के प्रथम लोककायुक्त श्री आई. डी. दुआ की नियुक्ति की गई। ये अब तक के एकमात्र लोकायुक्त जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे। श्री के. पी. यू. मेनन राजस्थान के प्रथम उपलोकायुक्त थे।
(नियुक्ति) लोकायुक्त की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा तीन सदस्यी समिति की सिफारिश के आधार पर की जाती है। इस समिति में मुख्यमंत्री, विपक्ष का नेता तथा उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश शामिल होता है। उपलोकायुक्त की नियुक्ति लोकायुक्त के परामर्श से राज्यपाल द्वारा की जाती है।
(योग्यता) लोकायुक्त बनने के लिए किसी व्यक्ति को उच्चतम न्यायालय का सेवानिवृत न्यायाधीश या उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहना आवश्यक है।
(कार्यकाल) इसका कार्यकाल 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु जो भी पहले हो, तक होता है। यह पुनर्नियुक्ति के पात्र नहीं है और सेवानिवृत्ति के बाद केंद्र या राज्य सरकार के किसी पद के लिए पात्र नहीं है। यह अपना त्यागपत्र राज्यपाल को देता है। लोकायुक्त को साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर पद से हटाया जा सकता है। इसके लिए राज्यपाल सर्वोच्च न्यायालय को जांच की सिफारिश करता है, जांच पूरी होने के पश्चात राज्य विधानमंडल में इसे विशेष बहुमत से पारित होना आवश्यक है।
यह अपनी वार्षिक रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपता है जो इसे विधानसभा के समक्ष प्रस्तुत करता है।
राजस्थान लोकायुक्त के क्षेत्राधिकार
- मुख्यमंत्री के अलावा राज्य के समस्त मंत्री
- जिला परिषद के प्रमुख व उप प्रमुख
- पंचायत समिति के प्रधान व उप प्रधान
- नगर निगम का महापौर या उप महापौर
- नगर पालिका व नगर परिषद के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष
- लोक सेवक सचिव व विभिन्न विभागों के अध्यक्ष
- सरकारी कंपनियां, स्थाई प्राधिकरणों, राज्य निगम के अधिकारी व कर्मचारी
हालांकि इसके द्वारा 5 वर्ष से अधिक पुराने मामले की जांच नहीं की जा सकती।
राजस्थान के लोकायुक्त