आपका हमारी वेबसाइट rajasthanigyan.com में स्वागत है। आज हम राज्यपाल के कार्य एवं शक्तियाँ से सम्बंधित विभिन्न संवैधानिक उपबंधों को विस्तार से पढ़ेंगे। हमारी इस वेबसाइट पर आपको राजस्थान राज्य की सभी exams में आने वाले महत्वपूर्ण Topics की आसान और सरल भाषा में जानकारी मिलती है। राज्यपाल के कार्य एवं शक्तियाँ सभी परीक्षाओं के दृष्टि से एक बहुत ही महत्वपूर्ण Topic है जिसका हम अध्ययन करेंगे।
राज्यपाल किसी राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है। राज्यपाल के पास भारत के राष्ट्रपति के समान कार्यकारी (Executive), विधायी (Legislative), वित्तीय (financial) और न्यायिक (Judicial) शक्तियाँ होती हैं। हालाँकि, उसके पास राष्ट्रपति की तरह कूटनीतिक, सैन्य और आपातकालीन शक्तियाँ नहीं होती हैं।
राज्यपाल के कार्य एवं शक्तियाँ
- राज्यपाल की कार्यकारी शक्तियाँ
- राज्यपाल की विधायी शक्तियाँ
- राज्यपाल की वित्तीय शक्तियाँ
- राज्यपाल की न्यायिक शक्तियाँ
राज्यपाल की कार्यकारी शक्तियाँ
- राज्य के सभी कार्यकारी कार्य औपचारिक रूप से राज्यपाल के नाम पर किए जाते हैं।
- राज्यपाल राज्य के सरकारी कार्यों के संचालन के लिए नियम बना सकता है।
- राज्यपाल राज्य के मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है। सभी मंत्री राज्यपाल की इच्छा पर ही पद धारण करते हैं। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा जैसे राज्यों में राज्यपाल आदिवासी कल्याण मंत्री की नियुक्ति भी करता है।
- राज्यपाल चुनाव आयुक्त की नियुक्ति करता है और उसकी सेवा शर्तें और कार्यकाल निर्धारित करता है। हालाँकि, राज्य चुनाव आयुक्त को उसी आधार पर हटाया जा सकता है जिस आधार पर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है।
- राज्यपाल राज्य के महाधिवक्ता की नियुक्ति करता है और उसका वेतन और भत्ते निर्धारित करता है। राज्य का महाधिवक्ता राज्यपाल की प्रसादपर्यंत पर ही पद धारण करता है।
- राज्यपाल राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति करता है I हालांकि राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों को हटाने का अधिकार केवल राष्ट्रपति के पास है I
- राज्यपाल उस राज्य के मुख्यमंत्री से प्रशासनिक मामलों या विधायी प्रस्ताव की जानकारी मांग सकता है I
- यदि मंत्री परिषद के किसी मंत्री ने कोई निर्णय लिया हो और मंत्री परिषद ने उसे निर्णय पर कोई संज्ञान न लिया हो तो राज्यपाल मुख्यमंत्री से उसे मामले पर विचार करने की मांग कर सकता है I
- राज्यपाल राष्ट्रपति से किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने के अनुशंसा कर सकता है राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्यपाल के पास अधिक शक्तियां आ जाती है I
- राज्यपाल राज्य के सभी विश्वविद्यालयों का कुलपति होता है तथा वह राज्य के विश्वविद्यालय में उप कुलपतियों की नियुक्ति करता है I
राज्यपाल की विधायी शक्तियां
- राज्यपाल राज्य विधानसभा के सत्र का आह्वान या समापन कर सकता है और राज्य विधानसभा का विघटन भी कर सकता है I (मंत्री परिषद या मुख्यमंत्री की सलाह पर)
- राज्यपाल विधानमंडल के प्रत्येक चुनाव के पश्चात पहले सत्र एवं प्रत्येक वर्ष के पहले सत्र को संबोधित करता है I
- राज्यपाल विधान मंडल को सदनों में लंबित व विचाराधीन विधायकों और अन्य मामलों पर संदेश भेज सकता है I
- जब विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों के पद खाली हो तो राज्यपाल किसी भी सदस्य को अध्यक्षता सौंप सकता है I
- राज्यपाल राज्य विधान परिषद में साहित्य, विज्ञान, कला, समाज सेवा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य करने वाले व्यक्तियों को विधान परिषद में से कुल सदस्यों के छठे भाग के रुप मे मनोनीत कर सकता है I
- विधानसभा में एंग्लो इंडियन समुदाय का प्रतिनिधित्व न होने पर राज्यपाल एक सदस्य की नियुक्ति कर सकता है I
- राज्यपाल निर्वाचन आयोग के साथ विचार कर विधानसभा के किसी सदस्य की सदस्यता निरर्हता का निर्णय करता है I
- विधानमंडल के सत्रों की अनुपस्थिति में राज्यपाल औपचारिक रूप से अध्यादेश की घोषणा कर सकता है एवं किसी भी समय उसे अध्यादेश को समाप्त कर सकता है I
- राज्यपाल वित्त आयोग, राज्य लोक सेवा आयोग तथा नियंत्रक महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट को राज्य विधानसभा में प्रस्तुत करता है I
- राज्य विधान मंडल द्वारा पारित किसी विधायक को राज्यपाल के पास भेजने पर उसके पास चार विकल्प होते हैं जो निम्न प्रकार है –
राज्यपाल की वित्तीय शक्तियां
- धन विधेयकों को विधानसभा में राज्यपाल की पूर्व सहमति के बाद ही प्रस्तुत किया जा सकता है I
- राज्यपाल यह सुनिश्चित करता है की वार्षिक वित्तीय विवरण (राज्य का बजट) को राज्य विधान मंडल के सम्मुख रखा जाए।
- राज्यपाल की सहमति के बिना किसी भी प्रकार के अनुदान की मांग नहीं की जा सकती I
- किसी अप्रत्याशित स्थिति से निपटने के लिए राज्य की आकस्मिक निधि से व्यय राज्यपाल की अनुमति से ही होता है I
- राज्यपाल पंचायतों और नगर पालिकाओं की वित्त स्थिति की समीक्षा के लिए हर 5 वर्ष बाद वित्त आयोग का गठन करता है I
राज्यपाल की न्यायिक शक्तियां
- जहां तक राज्य की कार्यपालिका शक्ति लागू होती है ऐसे विषय से संबंधित किसी कानून के विरुद्ध अपराध के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति को क्षमा, विलंब, रहता या दंड में छूट देने या दंड को निलंबित माफ या लघुकृत करने की शक्ति राज्यपाल के पास होती है I
- किसी राज्य के उच्च न्यायालय की न्यायाधीश की नियुक्ति के समय राष्ट्रपति राज्यपाल से विमर्श करता है I
- राज्यपाल राज्य के उच्च न्यायालय के साथ विचार कर जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति, पदोन्नति तथा स्थानांतरण करता है I
- राज्यपाल राज्य उच्च न्यायालय तथा राज्य लोक सेवा आयोग से विचार कर राज्य न्यायिक आयोग से जुड़े लोगों की नियुक्ति करता है I
राज्यपाल की संवैधानिक स्थिति
भारतीय संविधान राज्यों तथा केंद्र दोनों में ही संसदीय शासन प्रणाली का प्रावधान करता है I अतः राज्यपाल को केवल नाममात्र कार्यकारी बनाया गया है I वास्तविक कार्यकारी मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्री परिषद है I राज्यपाल की संवैधानिक स्थिति को अनुच्छेद 154, अनुच्छेद 163 और अनुच्छेद 164 के प्रावधानों से समझ सकते हैं I
- अनुच्छेद 154 – राज्य की कार्यकारी शक्ति राज्यपाल में निहित होगी और उसका प्रयोग उसके द्वारा सीधे उसके अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा किया जाएगा।
- अनुच्छेद 163 –मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्री परिषद होगी जो राज्यपाल को उसके कार्यों के निष्पादन की सलाह देगी हालांकि इसमें वह कार्य शामिल नहीं है जो राज्यपाल अपने विवेक से करेगा [अनुच्छेद 163 (C)]
- अनुच्छेद 164 – मंत्री परिषद सामूहिक रूप से राज्य की विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होगी।
उपरोक्त प्रावधानों से स्पष्ट है कि राज्यपाल की संवैधानिक स्थिति राष्ट्रपति से दो मामलों में भिन्न है I प्रथम, संविधान में राज्यपाल द्वारा अपने विवेक से कार्य करने की संभावना की परिकल्पना है परंतु राष्ट्रपति के साथ ऐसी कोई संभावना नहीं है I दूसरा, 42 में संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के बाद मंत्री स्तरीय सलाह राष्ट्रपति के लिए बाध्य कर दी गई है लेकिन राज्यपाल के संबंध में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है I
राज्यपाल के संवैधानिक विवेकाधिकार
संविधान के अनुसार यदि कोई प्रश्न उठता है कि कोई मामला राज्यपाल के विवेकाधिकार के अंतर्गत आता है या नहीं तो राज्यपाल का निर्णय अंतिम होगा और इसे न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकेगी निम्नलिखित मामलों में राज्यपाल को विवेकाधिकार प्राप्त है –
- किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखना।
- राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की अनुशंसा करना।
- किसी सीमावर्ती संघ राज्य क्षेत्र के प्रशासक के रूप में अपने कार्यों का निर्वहन करते समय।
- राज्य के प्रशासनिक और विधायी मामलों के संबंध में मुख्यमंत्री से जानकारी प्राप्त करना।
- असम, मेघालय, त्रिपुरा तथा मिजोरम में स्वायत्त जनजातीय जिला परिषद को खनिज अन्वेषण के लाइसेंस से प्राप्त राशि का देय के रूप में निर्धारण निर्धारण करना।
उपरोक्त स्पष्ट विवेकाधिकारों के अलावा राज्यपाल को परिस्थिति के अनुसार कुछ गुप्त विवेकाधिकार भी प्राप्त है I
- जब विधानसभा में किसी भी पार्टी के पास पूर्ण बहुमत न हो तब सरकार बनाने का निमंत्रण।
- राज्य विधानसभा में विश्वास साबित न करने पर मंत्री परिषद की बर्खास्तगी।
- यदि मंत्री परिषद अपना बहुमत खो दे तो राज्य विधानसभा को भंग करना।