राजस्थान की लोक देवियां हमारे समाज में जन्मी कुछ ऐसी महिलायें या कन्यायें है जिन्होंने अपने अलौकिक चमत्कारों तथा अपने साहसी कार्यों से समाज में लोगों के दुःख दर्द तथा जनमानस कल्याण के कार्य किये। लोगों में इनके प्रति अटूट आस्था है तथा इन्हें शक्ति के रूप में पूजते है। राजस्थान की लोक देवियां जिनकी पूजा और मान्यता का एक गहरा इतिहास और सांस्कृतिक प्रभाव रहा है। ये केवल धार्मिक आस्था का प्रतिक है बल्कि स्थानीय संस्कृति, परम्पराओं और सामाजिक जीवन का अभिन्न हिस्सा भी है जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती है। इन देवियों की पूजा विभन्न त्योंहारों, मेलों और अनुष्ठानों के माध्यम से की जाती है और इनका चित्रण अक्सर स्थानीय लोक कला, गीत और नृत्य में भी देखने को मिलता है। इन देवियों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है –
(क) कुल देवी :- किसी समाज में जिनकी पूजा आदिकाल से होती आ रही है तथा उनके पूर्वजों द्वारा निरंतर पूजा होती आ रही है। ये किसी समाज के लिए केवल एक ही होती है।
(ख) ईष्ट/आराध्य देवी :- इन्हें किसी जाति, समाज या परिवार द्वारा किसी विशेष चमत्कार के लिए पूजा जाता है। ये किसी समाज के लिए एक से अधिक हो सकती है।
करणी माता
- जन्म: 1387 ई. में जोधपुर के सुआप गांव में।
- पिता: मेहा जी चारण।
- माता: देवल।
- पति: देपाजी बीठू।
- बचपन का नाम: रिद्धी बाई
- मंदिर:
- देशनोक, बीकानेर में स्थित है।
- मेला:
- चैत्र तथा आश्विन के नवरात्रों में लगता है।
- कुल देवी:
- करणी माता बीकानेर के राठोड़ों की कुल देवी हैं।
- अन्य नाम:
- इन्हें चूहों की देवी के नाम से भी जाना जाता है।
- इनके चूहों को “काबा” कहते हैं और चारण जाति के लोग इन्हें अपना पूर्वज मानते हैं।
- पुजारी:
- इनके पुजारी को बारिदारजी कहते हैं।
- आराध्य देवी:
- तेमड़ा जी इनकी आराध्य देवी थीं।
- करणी माता के मंदिर के पास तेमड़ा माता का मंदिर भी है।
- प्रतिक चिन्ह:
- इनका प्रतीक चिन्ह चील पक्षी है।
- निर्माण कार्य:
- मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव करणी माता ने रखी।
- आरती:
- इनकी आरती को चिरजा कहते हैं, जो दो प्रकार की होती है:
- संघाउ (शांति के समय)
- घड़ाउ (विपत्ति के समय)
- इनकी आरती को चिरजा कहते हैं, जो दो प्रकार की होती है:
- राव बिका:
- राव बिका के करणी माता के आशीर्वाद से जांगल प्रदेश जीते।
- मंदिर का निर्माण:
- करणी माता के मंदिर का निर्माण कार्य राव बिका ने शुरू किया।
- इसके बाद कर्णसिंह और अंत में सूरतसिंह ने इसे पूर्ण किया।
- आधुनिक मंदिर का निर्माण महाराजा गंगासिंह ने करवाया।
- पहली यात्रा:
- करणी माता सर्वप्रथम नेहड़ नामक स्थान पर आई थीं।
- 151 वर्ष (1538) में धिनेरू की तलाई (बीकानेर) में प्राण त्याग दिए।
जीण माता
- जन्म स्थान: घांघू गांव (चूरू)
- बचपन का नाम: जीवनबाई
- मूल नाम: जवन्ती देवी
- भाई का नाम: हर्ष
मंदिर
- स्थान: रेवासा गांव, सीकर जिला
- निर्माण: 1121 ई. में पृथ्वीराज चौहान प्रथम के समय हटड़ द्वारा
प्रमुख विशेषताएँ
- गीत:
- नाम: चिरंजा
- विशेषता: राजस्थान लोक साहित्य का सबसे लंबा गीत
- प्रतिमा:
- अष्टभुजा प्रतिदिन “ढाई प्याला मदिरा पान” करती हैं
अन्य नाम
- मीणाओं की कुल देवी
- चौहानों की कुल देवी
- शेखावाटी क्षेत्र की लोक देवी
- मधुमक्खियों की देवी
कैला देवी
- कुल देवी: करौली के यादव वंश की
- आराधना: लागुरिआ गीत गाए जाते हैं
मंदिर
- स्थान: करौली जिले, कालीसिल नदी के किनारे, त्रिकूट पर्वत पर
विशेष आयोजन
- लक्खी मेला:
- समय: प्रतिवर्ष चैत्र मास की शुक्ल अष्टमी
अन्य विशेषताएँ
मंदिर के सामने: बोहरा की छतरियां
शीतला माता
- पूजा करने वाली जाति: कुम्हार जाति
नामों से पहचान
- चेचक देवी
- बच्चों की संरक्षिका देवी
- सैडल माता
- महामाई
मंदिर
- स्थान: जयपुर, चाकसू
- निर्माण: महाराजा माधोसिंह द्वारा
- विशेष आयोजन:
- मेला: चैत्र कृष्ण अष्टमी को
विशेष पूजन परंपरा
- भोजन:
- रात का बना हुआ (बासी) भोजन, जिसे “बास्योड़ा” कहा जाता है
अन्य विशेषताएँ
- सवारी: गधा
- महिलाओं की पूजा: संतान प्राप्ति के लिए
आवड़ माता
- ईष्ट देवी: जैसलमेर के भाटी राजवंश की
- मंदिर:
- स्थान: जैसलमेर, भू-गांव
- अन्य नाम: तेमड़ / तेमड़राय
विशेषताएँ
- करणी माता: इन्हें करणी माता की ईष्ट देवी माना जाता है
- अवतार: हिंगलाज माता का अवतार भी माना जाता है
- प्रतिक: “सुगनचिड़ी” को आवड़ माता का प्रतिक माना जाता है
पूजा की परंपरा
- ठाला: जैसलमेर के तेमड़ी पर्वत पर एक साथ सात कन्याओं को देवियों के रूप में पूजा जाता है, जिन्हें सम्मिलित रूप से “ठाला” कहा जाता है
तनोट माता
- प्रमुख स्थल: तनोट, जैसलमेर
नामों से पहचान
- थार की वैष्णो देवी
- सैनिकों की देवी
- रुमाल देवी
विशेषताएँ
- आराध्य देवी:
- जैसलमेर के भाटी शासकों और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवानों की
ऐतिहासिक महत्व
- 1965 का युद्ध:
- भारत-पाकिस्तान के युद्ध के बाद मंदिर के सामने विजय स्तम्भ का निर्माण किया गया
- चमत्कार: युद्ध के समय पाकिस्तान के सैनिकों द्वारा गिराए गए बम तनोट माता के चमत्कार से नहीं फटे
चामुंडा माता
- अवतार: दुर्गा का सातवां अवतार, कलिका माता
- महत्व: चण्ड और मुंड का वध करने के बाद चामुंडा कहलाईं
कुल देवी और आराध्य देवी
- कुल देवी: प्रतिहारों की
- आराध्य देवी: राठौड़ों की
मंदिर
- स्थान: जोधपुर, चामुंडा गांव की पहाड़ियों पर
- इतिहास:
- राव चुण्डा ने मंडोर में अपनी इष्ट देवी का मंदिर बनवाया
- राव जोधा ने इस मंदिर से मूर्ति लाकर जोधपुर किले के चामुंडा बुर्ज पर स्थापित की
- नए मंदिर का निर्माण महाराजा तखतसिंह ने करवाया
विशेष आयोजन
- मेला:
- चैत्र और आश्विन नवरात्रा को
महत्वपूर्ण घटना
- 2008 नवरात्रा भगदड़:
- भगदड़ में 300 लोगों की मृत्यु हुई
- जाँच के लिए “जसराज चोपड़ा कमेटी” बनाई गई
आई माता जी
सीरवी समाज की कुल देवी
जन्म एवं नाम:
- जन्म: 15वीं सदी
- मूल नाम: जीजीबाई
महत्व:
- सीरवी समाज की कुल देवी के रूप में पूजी जाती हैं।
- लोक देवता रामदेव जी की शिष्या थीं।
मुख्य मंदिर:
- स्थान: बिलाड़ा, जोधपुर (राजस्थान)
- मंदिर का नाम: बड़ेर
अनुयायियों के नियम:
- अनुयायी “11 डोरा पंथी” के नाम से 11 नियमों का पालन करते हैं।
विशेषता:
- मंदिर में आई माता जी की कोई मूर्ति नहीं होती।
- दीपक की ज्योत से लगातार केसर टपकने की अद्भुत मान्यता है।
आशापुरा माता
चौहानों और बिस्सा ब्राह्मणों की कुल देवी
मान्यता:
-
- कुल देवी: चौहान और बिस्सा ब्राह्मण समाज की कुल देवी के रूप में पूजी जाती हैं।
प्रमुख मंदिर:
-
- नाडौल, पाली (राजस्थान)
- मोदरां, जालौर (राजस्थान) – यहाँ इन्हें “महोदरी माता” कहा जाता है।
पूजा की विशेषताएँ:
-
- पूजा करते समय महिलाएँ घूंघट रखती हैं।
- पूजा के दौरान महिलाएँ अपने हाथों में मेहंदी नहीं लगातीं।
सकराय माता
चौहानों की ईष्ट देवी और खण्डेलवालों की कुल देवी
- मान्यता:
- ईष्ट देवी: चौहान समाज की ईष्ट देवी मानी जाती हैं।
- कुल देवी: खण्डेलवाल समाज की कुल देवी के रूप में पूजी जाती हैं।
- प्रमुख मंदिर:
- स्थान: मलयकेतु पर्वत, उदयपुरवाटी (राजस्थान)
- उपाधि:
- शाकम्बरी माता: अकाल के समय लोगों को बचाने के लिए फल, सब्जियाँ, और कंदमूल उगाने के कारण इन्हें “शाकम्बरी माता” के नाम से भी जाना जाता है।
ब्राह्मणी माता
कुम्हारों की कुल देवी
- मान्यता:
- कुल देवी: कुम्हार समाज की कुल देवी के रूप में पूजी जाती हैं।
- प्रमुख मंदिर:
- स्थान: सौरसेन, बारां (राजस्थान)
- मेला: माघ शुक्ल सप्तमी पर विशेष मेला आयोजित होता है, जिसे “गधों का मेला” कहा जाता है।
- विशेषता:
- राजस्थान की एकमात्र देवी जिनकी पीठ की पूजा की जाती है।
सुंधा माता
- कुल देवी: सुंधा माता देवल राजपूत और श्रीमाली ब्राह्मणों की कुल देवी हैं।
- मंदिर का निर्माण:
- निर्माणकर्ता: चोंचिगदेव
- स्थान: जसवंतपुरा पहाड़ियों, जालौर के सुंधा पर्वत
- रूप: चामुंडा माता के रूप में
- रोप वे:
- शुरुआत: 2007 में
- महत्व: राजस्थान का पहला रोप वे, जो मंदिर तक पहुँचने की यात्रा को सुगम बनाता है।
- धार्मिक महत्व:
- सुंधा माता की पूजा अर्चना क्षेत्र की महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा है।
लटियाल माता
- कुल देवी: लटियाल माता कल्ला ब्राह्मणों की कुल देवी हैं।
- मंदिर का स्थान:
- फलौदी, जोधपुर में स्थित है।
- अन्य नाम: इन्हें खेजड़ बेरी राय भवानी के नाम से भी जाना जाता है।
सच्चियाय माता
- कुल देवी: सच्चियाय माता ओसवालों की कुल देवी हैं।
- मंदिर का स्थान:
- ओंसिया, जोधपुर में स्थित है।
- निर्माणकर्ता:
- निर्माण परमार राजकुमार उपलदेव ने करवाया।
नारायणी माता
- कुल देवी: नारायणी माता नाई जाति की कुल देवी हैं और मीणा जाति की आराध्य देवी भी हैं।
- मूल नाम: इनका मूल नाम करमेती है।
- मंदिर का स्थान:
- बरवा पहाड़ी, राजगढ़ (अलवर) में स्थित है।
- निर्माण काल:
- मंदिर का निर्माण 11वीं सदी में हुआ।
- मेला:
- मेला वैशाख शुक्ल एकादशी को लगता है।
राणी सती
- कुल देवी: राणी सती अग्रवालों की कुल देवी हैं।
- मूल नाम: इनका मूल नाम नारायणी देवी है।
- अन्य नाम: इन्हें दादी सती के नाम से भी जाना जाता है।
- मंदिर का स्थान:
- झुंझुनू में स्थित है।
- मेला:
- मेला भाद्रपद अमावस्या को भरता है।
छींक माता
- मंदिर का स्थान:
- गोपाल जी का रास्ता, जयपुर में स्थित है।
- मेला:
- मेला माघ शुक्ल सप्तमी को भरता है।
छींछ माता
- मंदिर का स्थान:
- बांसवाड़ा में स्थित है।
ज्वाला माता
- कुल देवी: ज्वाला माता जयपुर के कच्छवाहा वंश की खांगरोत शाखा की कुल देवी हैं।
- मंदिर का स्थान:
- जोबनेर, जयपुर में स्थित है।
- अन्य नाम: इन्हें मधुमखियों की देवी भी कहा जाता है।
- मेला:
- मेला चैत्र और आश्विन नवरात्रों में लगता है।
आवरी माता
- मंदिर का स्थान:
- निकुम्भ, चित्तौड़गढ़ में स्थित है।
- विशेषता:
- यहाँ लकवाग्रस्त लोगों का इलाज किया जाता है।
बडली माता
- मंदिर का स्थान:
- अकोला, चित्तौड़गढ़ में बेडच नदी के किनारे स्थित है।
- विशेषता:
- मंदिर में दो तिबारियां बनी हुई हैं।
- ऐसा माना जाता है कि इन तिबारियों में से बच्चों को निकालने से उनकी बीमारियाँ दूर हो जाती हैं।
महामाया
- उपाधि: महामाया को शिशुरक्षक लोक देवी कहा जाता है।
- मंदिर का स्थान:
- मावली, उदयपुर में स्थित है।
अम्बिका माता
- मंदिर का स्थान:
- जगत, उदयपुर में स्थित है।
- विशेषता:
- इस मंदिर को “मेवाड़ का खजुराहो” कहा जाता है।
घेवर माता
- मुख्य मंदिर:
- राजसमंद झील में स्थित है।
- विशेषता:
- इन्हें राजसमंद झील की नींव रखने वाली देवी माना जाता है।
त्रिपुरसुंदरी माता
- उपाधि:
- कलिका पुराण के अनुसार, शिव की भार्या होने के कारण इन्हें त्रिपुरा कहा गया।
- विशेषता:
- शाक्त ग्रंथों में श्रीमहात्रिपुरसुंदरी को जगत का बीज और परम शिव का दर्पण कहा गया है।
- कुल देवी:
- ये पांचाल जाति की कुल देवी हैं।
- मंदिर का स्थान:
- तलवाड़ा, बांसवाड़ा में स्थित है।
- आराध्य देवी:
- ये लोहार जाति के लोगों की आराध्य देवी हैं।
- अन्य नाम:
- इन्हें “तरतई माता” के नाम से भी जाना जाता है।
हर्षद माता
- मंदिर का स्थान:
- आभानेरी, दौसा में स्थित है।
- इतिहास:
- मूल रूप से यह विष्णु का मंदिर था, लेकिन गर्भ गृह में हर्षद माता की प्रतिमा प्रतिष्ठित होने के कारण इसे हर्षद देवी का मंदिर कहा जाने लगा।
- निर्माणकर्ता:
- इसका निर्माण गुर्जर प्रतिहार शासकों द्वारा करवाया गया।
- विशेषता:
- इन्हें हर्ष एवं उल्लास की देवी माना जाता है।
पथवारी माता
- स्थापना:
- पथवारी माता गांव के बाहर स्थापित की जाती है।
- पूजा का उद्देश्य:
- इसकी पूजा तीर्थयात्रा की सफलता की कामना के साथ की जाती है।
जिलाड़ी माता
- मंदिर का स्थान:
- बहरोड़, अलवर में स्थित है।
- इतिहास:
- इन्होंने मुस्लिमों द्वारा बलपूर्वक हिंदुओं के धर्म परिवर्तन का विरोध किया और उसमें सफलता हासिल की।
- विशेषता:
- ये अलवर क्षेत्र की लोक देवी मानी जाती हैं।
माता राणी भटयाणी
- आराध्य देवी:
- ये ढोल जाति के लोगों की आराध्य देवी हैं।
- मंदिर का स्थान:
- जसोल, बाड़मेर में स्थित है।
- मेला:
- मेला भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी को लगता है।
- अन्य नाम:
- इन्हें भुआ सा के नाम से भी जाना जाता है।
- पुत्र:
- इनके पुत्र का नाम लालसिंह है, जिसका मंदिर भी जसोल में बना हुआ है।
हिंगलाज माता
- मान्यता:
- मान्यता के अनुसार, माता सती का ब्रह्मरंध्र हिंगलाज में आकर गिरा, इसलिए यहाँ हिंगलाज माता के रूप में पूजा की जाने लगी।
- अन्य नाम:
- इन्हें चांगली माई के नाम से भी जाना जाता है।
- प्रमुख मंदिर:
- पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित है।
- अन्य मंदिरों का स्थान:
- बाड़मेर के सिवाना में
- चूरू के बीदासर गांव में
- सीकर की फतेहपुर में
- जैसलमेर के लॉकदरवा में
- अजमेर के अंराई में
बाण माता
- कुल देवी:
- ये सिसोदिया वंश की कुल देवी हैं।
- प्रमुख मंदिर:
- नागदा गांव, उदयपुर में स्थित है।
सुगली माता
- कुल देवी:
- ये आउवा के चंपावत ठाकुरों की कुल देवी हैं।
- मंदिर का स्थान:
- पाली जिले के आउवा गांव में स्थित है।
- विशेष उपाधि:
- इसे 1857 की क्रांति की देवी भी कहा जाता है।
- मूर्ति:
- इनकी 10 सिर और 54 हाथों वाली काले पत्थर की मूर्ति है।
कैवाये माता
- कुल देवी:
- ये दहिया राजपूत की कुल देवी हैं।
- मंदिर का स्थान:
- किणसरिया गांव, नागौर में स्थित है।
- किणसरिया गांव का पुराना नाम सिणहाड़िया था।
- निर्माणकर्ता:
- मंदिर का निर्माण सांभर के चौहान शासक दुर्लभराज के सामंत चच्चदेव ने करवाया।
- इतिहास:
- सभामंडप की बाहरी दीवार पर 999 ई. का शिलालेख है।
नागणेची माता
- कुल देवी:
- यह राठोड़ों की कुल देवी हैं और मेवाड़ के शासक भी इनकी पूजा करते हैं।
- मंदिर का स्थान:
- नागाणा (बाड़मेर) में स्थित है।
- अन्य नाम:
- इन्हें चक्रेश्वरी माता भी कहा जाता है।
- प्रतिमा:
- इनकी 18 भुजाओं वाली प्रतिमा राव बिका ने स्थापित की।
- विशेष पूजा:
- पूजा करने के लिए सात गांठों का लकड़ी का डोरा बांधा जाता है, जिसे देवी जी कड़ा कहते हैं।
राजस्थान की कुछ अन्य लोक देवियां
निष्कर्ष
राजस्थान की लोक देवियां न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं, बल्कि ये सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर का भी महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनकी पूजा से जुड़े अनुष्ठान, कहानियाँ, और पर्व न केवल धार्मिक भावना को प्रकट करते हैं, बल्कि समाज को जोड़ने का कार्य भी करते हैं। ये लोक देवियाँ राजस्थान की सांस्कृतिक विविधता और गहराई को दर्शाती हैं, और उनकी महत्ता आज भी जीवित है।