आपका हमारी वेबसाइट rajasthanigyan.com में स्वागत है। आज हम राज्य मंत्रिपरिषद से सम्बंधित विभिन्न संवैधानिक उपबंधों को विस्तार से पढ़ेंगे। हमारी इस वेबसाइट पर आपको राजस्थान राज्य की सभी exams में आने वाले महत्वपूर्ण Topics की आसान और सरल भाषा में जानकारी मिलती है। राज्य मंत्रिपरिषद सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के दृष्टि से एक बहुत ही महत्वपूर्ण Topic है जिसका हम अध्ययन करेंगे।
राज्य मंत्रिपरिषद
भारतीय संविधान ने केंद्र के समान राज्यों को भी संसदीय शासन प्रणाली दी है I इसके अनुसार प्रत्येक राज्य में एक मंत्री परिषद होगी और उसका मुख्य मुख्यमंत्री होगा जो राज्य में वास्तविक कार्यकारी प्राधिकारी है I राज्यों की मंत्री परिषद का गठन एवं कार्य इस प्रकार होगा जो जैसे केंद्र में मंत्री परिषद का होता है l संविधान का अनुच्छेद 163 मंत्री परिषद की स्थिति से संबंधित है और अनुच्छेद 164 मंत्रियों की नियुक्ति कार्यकाल शपथ वेतन आदि से संबंधित है I
राज्य मंत्री परिषद : संवैधानिक अनुच्छेद
मंत्रिपरिषद के सलाह की प्रकृति
राज्यपाल के अपने विवेकाधीन कार्यों को छोड़कर अपने कार्यों की निर्वहन में सहायता और सलाह के लिए एक मंत्री परिषद होगी। यदि कोई प्रश्न उठता है कि कोई कार्य राज्यपाल के विवेकाधिकार में आता है या नहीं तो राज्यपाल का निर्णय अंतिम होगा।
वहीं राज्यपाल को मंत्रियों मंत्री परिषद द्वारा दी गई सलाह को किसी भी आधार पर न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। 1971 के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार राज्यपाल के विवेकाधीन कार्यों के अलावा अन्य सभी कार्यों में सहायता और सलाह के लिए मंत्री परिषद का होना आवश्यक है। भले ही राज्य विधानसभा भंग हो जाए या मंत्री परिषद अपना इस्तीफा दे दे। मंत्री परिषद तब तक अपने पद पर बना रहता है जब तक की उसका उत्तराधिकारी पदभार संभाल न ले।
मंत्रियों का उत्तरदायित्व
अनुच्छेद 164 के अनुसार राज्य मंत्री परिषद सामूहिक रूप से राज्य की विधानसभा की प्रति उत्तरदायी होती है I विधानसभा द्वारा मंत्री परिषद के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित किए जाने पर सभी मंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ता है जिसमें विधान परिषद के मंत्री भी शामिल है I कैबिनेट के फैसले सभी मंत्रियों के लिए बाध्यकारी हैं I यदि कोई मंत्री इसका समर्थन नहीं करता तो उसे मंत्री पद से इस्तीफा देना होगा।
मंत्रियों को कानूनी जिम्मेदारी का संविधान में कोई उपबंध नहीं है। अतः कोई न्यायालय मंत्रियों द्वारा राज्यपाल को दी गई सलाह की जांच नहीं कर सकता।
राज्य मंत्रिपरिषद का संगठन
संविधान में राज्य मंत्री परिषद के आकार और मंत्रियों की रैंकिंग के बारे में कोई स्पष्ट उपबंध नहीं है। इन्हें परिस्थितियों के अनुसार मुख्यमंत्री द्वारा निर्धारित किया जाता है I राज्य मंत्री परिषद में तीन प्रकार के मंत्री होते हैं – कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री और उप-मंत्री। इनमें सबसे ऊपर मुख्यमंत्री होता है जो राज्य का सर्वोच्च शासकीय प्राधिकारी होता है l
- कैबिनेट मंत्री – राज्य सरकार में महत्वपूर्ण मंत्रालय में जैसे गृह मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय, कृषि मंत्रालय आदि का नेतृत्व करते हैं I ये कैबिनेट के सदस्य होते हैं, उनकी बैठकों में भाग लेते हैं और नीतियां तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं I
- राज्य मंत्री – इन्हें विभागों का स्वतंत्रता प्रभार दिया जा सकता है या इन्हें कैबिनेट मंत्रियों से संबद्ध किया जा सकता है I ये कैबिनेट के सदस्य नहीं होते और जब तक की विशेष रूप से इनको आमंत्रित नहीं किया जाता है तब तक कैबिनेट की बैठकों में भाग नहीं लेते।
- उप-मंत्री – यह कैबिनेट मंत्रियों से जुड़े होते है और प्रशासनिक, राजनीतिक और संसदीय कर्तव्य में उनकी सहायता करते हैं I ये कैबिनेट के सदस्य नहीं होते।
राज्य मंत्री परिषद में कभी-कभी एक उपमुख्यमंत्री भी शामिल होता है I उपमुख्यमंत्री का संविधान में कोई उपबंध नहीं है I इसकी नियुक्ति अधिकतम स्थानीय राजनीतिक कारणों से की जाती है I
कैबिनेट
यह राज्य मंत्री परिषद का छोटा निकाय होता है जो इसका केंद्र भी है I इसमें केवल कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं यह राज्य सरकार का वास्तविक केंद्र तथा राज्य सरकार की राजनीतिक-प्रशासनिक प्रणाली में सर्वोच्च निर्णय लेने वाला प्राधिकारी और राज्य सरकार का मुख्य नीति निर्धारक निकाय है I
कैबिनेट कमेटी – कैबिनेट अपना कार्य विभिन्न समितियां के माध्यम से करता है जिन्हें कैबिनेट कमेटी कहते हैं I यह दो प्रकार की होती हैं स्थाई समिति और तदर्थ समिति I इसमें पहले वाली स्थाई दूसरी अस्थाई प्रकृति की होती है I इसकी स्थापना समय और परिस्थिति के अनुसार मुख्यमंत्री द्वारा की जाती है I कैबिनेट उनके निर्णय की समीक्षा कर सकती है I