राज्य का राज्यपाल

आपका हमारी वेबसाइट rajasthanigyan.com में स्वागत है। आज हम राज्य का राज्यपाल से सम्बंधित विभिन्न संवैधानिक उपबंधों की विस्तार से पढ़ेंगे। हमारी इस वेबसाइट पर आपको राजस्थान राज्य की सभी exams में आने वाले महत्वपूर्ण Topics की आसान और सरल भाषा में जानकारी मिलती है। राज्य का राज्यपाल सभी परीक्षाओं के दृष्टि से एक बहुत ही महत्वपूर्ण Topic है जिसका हम अध्ययन करेंगे।

भारतीय संविधान ने राज्य में सरकार की वही प्रणाली दी है जो केंद्र में केंद्र सरकार की है। अर्थात संसदीय प्रणाली जिसमें एक कार्यपालिका, विधायिका तथा न्यायपालिका होती है। संविधान का भाग VI राज्य में सरकार से सम्बंधित है जिसमे अनुच्छेद 152 से लेकर अनुच्छेद 237 तक राज्य से सम्बंधित है।

संविधान के भाग VI में अनुच्छेद 153 से लेकर 167 तक राज्य की कार्यपालिका से सम्बंधित है। राज्य की कार्यपालिका में राज्य का राज्यपाल, मुख्यमंत्री तथा मंत्रिपरिषद और राज्य महाधिवक्ता शामिल होता है। केंद्र में उपराष्ट्रपति के समान राज्य में उपराज्यपाल का कोई उपबंध नहीं है।

राज्य का राज्यपाल

राज्य का राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है तथा वह मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करता है। राज्यपाल केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है। मूल संविधान के अनुसार प्रत्येक राज्य का केवल एक ही राज्यपाल होगा परंतु 7वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1956 के अनुसार एक ही व्यक्ति दो या दो से अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जा सकता है।

राज्यपाल की नियुक्ति

राज्यपाल का चुनाव जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से नहीं होता है बल्कि राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा अपने हस्ताक्षर एवं मुहर सहित जारी अधिपत्र द्वारा होती है। (अनुच्छेद 155)

भारत में राज्यपाल की नियुक्ति के लिए कनाडा मॉडल को अपनाया गया है जिसके अनुसार राज्यपाल की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा होगी। राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा होती है अतः वह केंद्र सरकार द्वारा मनोनीत होता है उच्चतम न्यायालय के 1779 के अपने निर्णय के अनुसार राज्य में राज्यपाल का कार्यकाल केंद्र सरकार के अधीन रोजगार नहीं है यह एक स्वतंत्र संवैधानिक कार्यालय है जो केंद्र सरकार का अधीनस्थ नहीं है।

राज्यपाल के लिए योग्यताएं

संविधान के अनुच्छेद 157 में राज्यपाल की नियुक्ति के लिए दो योग्यताओं का उल्लेख है जो निम्न है-

  • वह भारत का नागरिक हो।
  • वह 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।

उपरोक्त दो योग्यताओं के अलावा कुछ सालों में दो और परंपराएं विकसित हुई है हालांकि कुछ मामलों में इन दोनों परंपराओं का उल्लंघन किया गया है।
प्रथम, राज्यपाल नियुक्त होने वाला व्यक्ति उस राज्य का नागरिक न हो अर्थात राज्य के बाहर से हो ताकि वह स्थानीय राजनीति से मुक्त रहे। दूसरा, राज्यपाल की नियुक्ति करते समय राष्ट्रपति को उसे संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री से परामर्श करना चाहिए ताकि राज्य का संवैधानिक तंत्र सुचारू रूप से संचालित हो सके।

राज्यपाल के कार्यालय की शर्तें

संविधान के अनुच्छेद 158 के अनुसार राज्यपाल के कार्यालय की निम्नलिखित शर्तें होती है –

  • वह संसद या राज्य विधान मंडल का सदस्य ना हो अगर है तो उसे राज्यपाल का पदभार ग्रहण करने के लिए अपने सदस्यता छोड़नी होगी।
  • वह किसी लाभ के पद पर ना हो।
  • वह पागल वह दिवालिया घोषित न किया गया हो।
  • वह राज्य विधानसभा का सदस्य चुने जाने की योग्यता रखता हो।
  • वह संसद द्वारा निर्धारित सभी प्रकार की उपलब्धियां एवं विशेषाधिकार का अधिकारी होगा।

राज्यपाल का कार्यकाल

सामान्यतया राज्यपाल का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है परंतु राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति की इच्छापर्यंत पद धारण करता है उच्चतम न्यायालय के अनुसार राष्ट्रपति की इच्छा न्यायाचित नहीं है अर्थात राज्यपाल के कार्यालय की सुरक्षा नहीं है उसे राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय हटाया जा सकता है संविधान में राष्ट्रपति द्वारा राज्यपाल को हटाए जाने के संबंध में कोई उपबंध नहीं है I

राष्ट्रपति राज्यपाल को अपने कार्यकाल के दौरान एक राज्य से दूसरे राज्य में राज्यपाल के रूप में स्थानांतरित कर सकता है साथ ही किसी राज्यपाल के कार्यकाल की अवधि समाप्त होने पर राष्ट्रपति उसे पुनः नियुक्त भी कर सकता है राज्य का राज्यपाल अपने पद पर अपना कार्यकाल पूरा होने पर भी बना रहता है जब तक की नया राज्यपाल अपना पदवार ग्रहण नहीं कर लेता।

राज्यपाल से सम्बंधित महत्वपूर्ण अनुच्छेद

राज्य का राज्यपाल


संविधान का अनुच्छेद 153


संविधान का अनुच्छेद 154


संविधान का अनुच्छेद 155


संविधान का अनुच्छेद 156


संविधान का अनुच्छेद 157


संविधान का अनुच्छेद 158


संविधान का अनुच्छेद 159


संविधान का अनुच्छेद 160


संविधान का अनुच्छेद 161


संविधान का अनुच्छेद 162

Leave a Comment