राजस्थान के स्तम्भ एवं मीनारें

आज के इस ब्लॉग पोस्ट में राजस्थान के स्तम्भ और मीनारें जो की राजस्थान के किसी भी Exam की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण टॉपिक है का अध्ययन करेंगे। राजस्थान के स्तम्भ एवं मीनारें किसी राजा द्वारा युद्ध में अपनी विजय के उपलक्ष में बनवाई गई है अर्थात ये शौर्य तथा विजय का प्रतीक है तो आइये हम इन विजय प्रतीकों का विस्तार अध्ययन करें।

विजय स्तम्भ –

राजस्थान के स्तम्भ एवं मीनारें

यह चित्तौड़ दुर्ग में स्थित है।
इसका निर्माण राणा कुम्भा ने सारंगपुर/मालवा विजय (1437) के उपलक्ष में करवाया।
इसका निर्माणकार्य 1440-1448 (8 सालों) तक चला तथा कुल 90 लाख का खर्चा हुआ।
इसकी आकृति “डमरु” के समान है तथा इसका शिल्पी जैता था।
विजय स्तम्भ 122 फीट ऊँचा 9 मंजिला स्तम्भ है जिसमें कुल 157 सीढियाँ है।
इसमें चारों तरफ मूर्तियाँ लगी है अतः इसे मूर्तियों का अजायबघर कहा जाता है।
इसकी तीसरी मंजिल पर अरबी भाषा में 9 बार अल्लाह लिखा है।
इसकी 8 वीं मंजिल पर कोई मूर्ति नहीं है।
इसकी 9 वीं मंजिल पर मेवाड़ी भाषा में कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति लिखी हुई है जिसे अत्री – महेश (अभिकवि) ने लिखा।
1949 में भारत सरकार द्वारा विजय स्तम्भ पर 1 रुपये की डाक टिकट जारी की गई। यह पहली ईमारत थी जिस पर कोई डाक टिकट जारी हुई।
विजय स्तम्भ राजस्थान पुलिस तथा माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का प्रति चिन्ह है।
विजय स्तम्भ के कई उपनाम है जो निम्न है –

रोम के टार्जन समान – फर्ग्युसन
कुतुबमीनार से भी श्रेष्ठ – जेम्स टॉड
हिन्दू प्रतिमा शास्त्र की की अनुपम निधि – आर. पी. व्यास
पुराने देवी देवताओं का खजाना – हीराचंद ओझा
संगीत भव्य चित्रशाला – डॉ सीमा राठौड़
लोक जीवन का रंगमंच – गोपीनाथ शर्मा
विष्णु ध्वज – उपेन्द्र नाथ

कीर्ति स्तम्भ –

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यह विजय स्तम्भ के साथ चित्तौड़ दुर्ग स्थित है।
इसका निर्माण 12 वीं सदी में जैन व्यापारी जीजा ने करवाया।
यह 75 फीट ऊँचा 7 मंजिला स्तम्भ है।
यह प्रथम जैन तीर्थकर आदिनाथ/ऋषभदेव को समर्पित है।

ईसर लाट –

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यह जयपुर में स्थित है जिसे सवाई ईश्वर सिंह ने 1749 ई. में बनवाया।
इसे 1748 ई. में मराठों के साथ हुए राजमहल युद्ध की विजय के उपलक्ष में बनवाया गया।
इसे जयपुर की कुतुबमीनार या जयपुर का विजय स्तम्भ के उपनाम से भी जाना जाता है।
इसे “सरगासूली” (स्वर्ग को छूने वाली) भी कहा जाता है।

घण्टाघर –

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यह बीकानेर में स्थित है जिसे रायसिंह द्वारा बनवाया गया।
इसका निर्माणकार्य 1589-1594 के बीच हुआ।

शाही घण्टाघर –

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यह धौलपुर में स्थित है।
इसे निहाल सिंह द्वारा बनाया गया इसीलिए इसे “निहाल टावर” भी कहते है।
यह भारत का सबसे बड़ा घण्टाघर है जिसकी ऊंचाई 150 फीट है।

वेली टावर घण्टाघर –

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यह कोटा में स्थित है।
इसे उम्मीद सिंह द्वितीय ने पी. ए. वेली के देखरेख में बनवाया।

धर्म स्तूप –

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यह चूरू में स्थित है जिसकी स्थापना 1925 ई. में जुगल किशोर द्वारा की गई।
इसको बनाने लाल पत्थर का उपयोग किया गया है अतः इसे लाल घण्टाघर भी कहते है।
इसमें सभी धर्मों की मूर्तियां लगी है अतः इसे “सर्व धर्म सदभाव स्तूप” भी कहते है।

जंतर – मंतर –

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यह जयपुर में स्थित है जिसका निर्माण सवाई जयसिंह ने 1728 ई. में करवाया।
यह सवाई जयसिंह की पांचों वेधशालाओं में सबसे बड़ी वेधशाला है।
यहाँ विश्व सबसे बड़ी सौर ऊर्जा घड़ी है।
यहाँ रामयंत्र (वायु परीक्षण), जयप्रकाश यन्त्र (अक्षांशीय परीक्षण) है।
इसे 2010 में यूनेस्को की विश्व धरोवर सूचि में शामिल किया गया।

गरड़ा का शहीद स्मारक –

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यह बाड़मेर में स्थित है।
इसे 1965 में हुए भारत – पाकिस्तान युद्ध में शहीद हुए रेलवे कर्मचारियों की याद में बनाया गया।

जुबली क्लॉक टावर –

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यह अजमेर में स्थित है।
इसे 1887 ई. में महारानी विक्टोरिया की स्वर्ण जयंती पर बनवाया गया।

शहीद स्मारक –

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यह जयपुर स्थित है।
इसे “अमर-जवान ज्योति स्मारक” भी कहते है।

महाराणा प्रताप स्मारक –

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यह दिवेर, राजसमंद में स्थित है।
इसे महाराणा प्रताप द्वारा 1582 के दिवेर के युद्ध को जितने के उपलक्ष में बनवाया गया।

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