लोक देवता वे महान पुरुष है जिन्होंने अपने वीरतापूर्ण कार्यों तथा दृढ आत्मबल द्वारा समाज में सांस्कृतिक मूल्यों की स्थापना और धर्म की रक्षा एवं जन कल्याण हेतु अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। अपनी अलौकिक शक्तियों एवं लोक मंगल कार्यों हेतु ये लोगों की आस्था के प्रतीक बन गए और समाज के सामान्य जान मानस द्वारा पूजे जाने लगे। राजस्थान के लोक देवता राजस्थान क्षेत्र विशेष के लोगो द्वारा ही प्रमुखता से पूजे गए अर्थात इनकी प्रसिद्धि सम्पूर्ण भारतवर्ष में एक सामान नहीं थी।
अलग–अलग समय तथा क्षेत्र विशेष के आधार पर राजस्थान के विभन्न लोक देवता हुए। इन्हे समाज में धर्म, जाति या क्षेत्र से परे सभी लोगों द्वारा पूजा गया। हिन्दू धर्म में इन पूजनीय योद्धाओं को “देवता” कहा गया वहीं मुस्लिम धर्म में इन्हें “पीर” कहा गया। इन लोगों ने समाज में जातिवाद, सम्प्रदायवाद, छुआ–छूत आदि से ऊपर उठाकर जन सामान्य के लिए कार्य किया अतः इन्हें “आधुनिक समाज सुधारक” भी कहा जाता है।
मारवाड़ क्षेत्र में पांच लोक देवताओं के समूह को पांच पीर कहा गया जिसमे पाबू जी, हड़बू जी, रामदेव जी, महा जी मंगलिया तथा गोगा जी शामिल है। इन पंच पीरों की निम्न राजस्थानी दोहे द्वारा समझ सकते है :
पाबू, हड़बू, रामदे, मंगलिया महा।
पांचूँ पीर पधारज्यो, गोगाजी जेहा।।
उपर्युक्त पांच पीरों के अलावा भी बहुत सारे लोक देवता हुए जिन्हे निम्न सारणी द्वारा समझ सकते है :
तो आइये हम ऊपर दर्शाये गए राजस्थान के लोक देवताओं का विस्तार से अध्ययन करते है।
1. पाबू जी :-
पाबूजी का जन्म 1239 ईस्वी पश्चिमी राजस्थान में हुआ। पाबूजी राठौड़ राजवंश से सम्बंधित है और राव सीहा के वंशज माने जाते है। इनको लक्ष्मण का अवतार भी माना जाता है। इनका विवाह फुलम दे के साथ हुआ जो अमरकोट के सूरजमल सोढा की राजकुमारी थी।
इनके सहयोगी चंदा, डामा ( दो भील भाई ) तथा हरमल, सलजी सोलंकी है।
इनकी घोड़ी का नाम “केसर कलमी” है जो इनके गांव कि देवल नामक चारण महिला की थी हालाँकि इस घोड़ी को इनकी माँ का अवतार भी माना जाता है।
इनका मेला चैत्र अमावस्या को लगता है।
इनकी कहानी लोक नाट्य के रूप में भील जाती के भोपा (पुजारी) फड़ वचन रावणहत्था नामक वाद्ययंत्र के साथ प्रस्तुत करते है हालाँकि इनकी वीरता गाथा (पावडे) “माट” नामक वाद्ययंत्र के साथ प्रस्तुत करते है।
इनको गौरक्षक (गायों की रक्षा करते हुए मृत्यु), ऊंट रक्षक (सबसे पहले ऊंट लेकर आये अपनी भतीजी केलम के विवाह में), शरणागत रक्षक (गुजरात के 7 थोरी भाइयों के रक्षा) के नाम से भी जाना जाता है।
इनकी मृत्यु गायों की रक्षा करते हुए अपने बहनोई जोधपुर के जायल जींदराव खींची के खिलाफ लड़ते हुए हो गई।
पाबू जी राजस्थान में ऊंट पालक जाति राइका/रैबारी/देवासी के मुख्य आराध्य देवता है। ऊंट बीमार होने पर पाबूजी की फड़ का वचन किया जाता है।
2. गोगा जी :-
राजस्थान के सभी पांच पीरों में गोगा जी सबसे प्रमुख है। इनकी माता बाछल ने 12 वर्षों तक गुरु गोरखनाथ जी की पूजा की उसके पश्चात् गोगा जी का जन्म 1003 ई. में चौहान वंश में हुआ।
इन्हे “सर्प रक्षक देवता” कहा जाता है।
ये अरजन-सरजन के खिलाफ गायों की रक्षा की लिए लड़ते हुए शहीद हो गए। इनका सर धड़ से अलग होकर ददरेवा में गिरा तो वहां शीर्षमेड़ी है और इनका धड़ गोगामेड़ी में गया तो वहाँ धरमेडी/धुरमेडी है।
इनको कटे हुए सिर से लड़ते देख महमूद गजनवी में “जाहिर पीर” (साक्षात् पीर) कहा।
इनका मेला गोगामेड़ी में भाद्रपद कृष्ण नवमी को लागता है। इनके भक्त डेरू, ढोल आदि वाद्ययंत्रों के साथ इनके भजन गाते है।
गोगा जी की ओल्डी खिलेरियों की ढाणी (सांचौर) में है। इनके थान/देवरे खेजड़ी वृक्ष के नीचे होते है तथा सम्पूर्ण राजस्थान में मिलते है। अतः इनके लिए एक कहावत “गांव गांव खेजड़ी गांव गांव गोगा” प्रसिद्ध है।
किसान वर्षा के बाद खेत जोतने से पहले हल व बेल को 9 गांठों की राखी बाँधते है जिसे “गोगाराखड़ी” कहते है।
कायम सिंह गोगा जी के 17 वीं पीढ़ी के शासक थे जिसे बलपूर्वक मुसलमान बनाया गया। कायमखानी इनके वंशज है।
इनके मंदिर जिसे मेड़ी कहा जाता है, कि बनावट मस्जिदनुमा होती है तथा इनके मंदिर में मुख्य द्वार पाए बिस्मिल्लाह लिखा हुआ है।
इनके बारे में एक पुस्तक “गोगा जी रा रावला “ कवि मेह द्वारा लिखी गई।
3. मेहा जी मंगलिया :-
इनका जन्म बापिणी (जोधपुर) में 15 वीं शताब्दी में हुआ। इनका कुल पंवार क्षेत्रीय है परन्तु इनका पालन -पोषण उनके ननिहाल में मंगलिया गौत्र में हुआ इसीलिए इनको मंगलिया खा जाता है। ये राव चुण्डा के समकालीन थे।
इनका मंदिर बापिणी गांव जोधपुर में है जहां कृष्ण जन्माष्ठमी के दिन मेला लगता है।
इनके घोड़े को “किरड काबरा” कहते है।
जैसलमेर के भाटी रणकदेव के साथ युद्ध करते हुए ये शहीद हो गए।
इनके भोपों (पुजारियों) की वंश वृद्वि नहीं होती अतः ये पुत्र गोद लेकर वंश बढ़ाते है।
4. रामदेव जी तंवर :-
बाबा रामदेव राजस्थान के सबसे अधिक आराध्य लोक देवता है। ये रामदेव जी के अलावा रामसा पीर, रुणिचे रा धणी व पीरां रा पीरां आदि के नाम से प्रसिद्ध है।
रामदेव जी को कृष्ण तथा उनके बड़े भाई बिरमदेव को बलराम का अवतार माना जाता है। उनकी सगी बहिन लाछां बाई तथा सुगना बाई है जबकि उनकी धर्म बहिन डाली बाई थी।
भाद्रपद शुक्ल एकादशी को इन्होंने रुणेचा में समाधी ले ली वही इनकी धर्म बहिन डाली बाई ने इनसे एक दिन पहले समाधी ली।
इन्होने सांप्रदायिक सौहार्द स्थापित करने तथा छुआ-छूत मिटाने का प्रयास किया।
ये अकेले ऐसे पीर थे जो खुद कवि थे। इन्होंने “चौबीस बाणिया” नामक पुस्तक लिखी।
इन्होंने कामड़िया पंथ स्थापित किया जिसकी महिलाएं “तेरहताली नृत्य” करती है।
रामदेव जी के अन्य मंदिर – पोकरण, छोटा रामदेवरा (गुजरात), हलदिना (अलवर)
5. हड़बूजी सांखला :-
हड़बूजि का जन्म भूंडेल (नागौर) में 15वीं शताब्दी में हुआ परन्तु ये हरभाम जाल (जोधपुर) में जाकर रहने लग गए। ये राव जोधा के समकालीन तथा रामदेव जी के मौसेरे भाई थे।
ये शकुन शास्त्र के ज्ञाता थे। रामदेव जी से प्ररेणा लेकर इन्होंने अस्त्र – शस्त्र को त्याग दिया तथा बालीनाथ जी से दीक्षा ली।
राव जोधा को इन्होंने मंडौर जीत का आशीर्वाद दिया तथा कटार भेंट की। मंडौर जीत के बाद राव जोधा ने इनको बेंगटी गांव (फलौदी) भेंट किया जहाँ इनका मंदिर बना हुआ है। ये इस गांव में विकलांग तथा बूढी गया की सेवा करते थे तथा अपने बैलगाड़ी में इनके लिए हरा चारा लाते थे। इनके भक्तो द्वारा इनकी इसी गाड़ी की पूजा की जाती है।
हड़बूज के पुजारी सांखला जाति के पुजारी होते है तथा सियार को इनकी सवारी माना जाता है।
हड़बूजी के जीवन पर “सांखला हड़बू का हाल” ग्रन्थ लिखा गया है।
6. वीर तेजा जी :-
तेजाजी धौल्या गौत्र के नागवंशीय जाट थे। इन्हें काला और बाला के देवता, धौलियावीर, कृषि कार्यों के उपकारक देवता तथा गौरक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है। इनके पुजारियों को “घोड़ला” कहा जाता है।
इनकी याद में प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल दशमी (तेजादशमी) को परबतसर (नागौर) में भव्य पशु मेला भरता है जो आय की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा पशु मेला है।
इनकी मृत्यु लांछा गुजरी की गायों की रक्षा करते हुए सुरसुरा गांव (अजमेर) में हुई।
किसान हल जोतते समय तेजाजी के गीत गाते है।
तेजा जी पर डाक टिकट जारी किया (सितंबर 2011) तथा “लीलण एक्सप्रेस रेल सेवा” (2007) शुरू की गई।
“जुंझार तेजा” (लज्जाराम मेहता), “तेजाजी रा ब्यावला” (बंशीधर शर्मा) तेजाजी पर लिखी पुस्तकें है।
7. देवनारायण जी :-
इनका जन्म बागड़ावत गुर्जर परिवार में हुआ और इन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है।
इन्हें “औषधि देवता” माना जाता है और इनके मंदिर में नीम के पत्ते चढ़ाये जाते है क्योंकि ये नीम पत्तों से दवाइयाँ बनाते थे।
इनके मंदिर में मूर्ति नहीं है ईंट की पूजा की जाती है।
इनकी फड़ गुर्जर भोपे (पुजारी) गाते है। राजस्थान में सबसे बड़ी फड़ इनकी है जिसे जंतर नमक वाद्ययंत्र के साथ गाया जाता है तथा इस पर 1992 में डाक टिकट शुरू किया गया जबकि देवनारायण जी महाराज पर 2009 में डाक टिकट जारी किया गया।
इनके प्रमुख मंदिर- आसींद (भीलवाड़ा), देवमाली (ब्यावर), देवधाम (टोंक), राणा सांगा द्वारा बनवाया गया देव डूंगरी (चित्तौड़) में है।
8. मल्लिनाथ जी :-
इनका जन्म 1358 ई. में तिलवाड़ा (बाड़मेर) में हुआ। ये मारवाड़ के राठौड़ राजा थे।
इनकी पत्नी रूपा दे थे जो की राजस्थान में एक लोक देवी के रूप में पूजनीय है। अपनी पत्नी की प्रेरणा से ही ये अपने गुरु उगमसिंह भाटी के शिष्य बने।
1378 ई. में इन्होंने फिरोज तुग़लक़ के मालवा गवर्नर निजामुद्दीन की 13 टुकड़ियों को युद्ध में हराया।
प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी तक तिलवाड़ा में मल्लिनाथ पशु मेला आयोजित होता है। यह राजस्थान का सबसे प्राचीन पशु मेला है
इनके नाम पर बाड़मेर के मालाणी क्षेत्र का नामकरण हुआ जहाँ के घोड़े (मालाणी के घोड़े) पुरे राजस्थान में प्रसिद्ध है।
1399 ई. में मारवाड़ के सभी संतों की एकत्रित कर इन्होने हरि कीर्तन का आयोजन करवाया।
9. बिग्गा जी :-
इनका जन्म 1301 ई. में रिड़ी (बीकानेर) में हुआ।
इन्हे जाटों के जाखड़ समाज का कुल देवता माना जाता है।
राठालि जोहड़ी के युद्ध में गायों की रक्षा करते हुए शहीद हो गए।
10. देव बाबा :-
इनका जन्म नगला जहाज (भरतपुर) में हुआ।
इनका मेला वर्ष में दो बार (भाद्रपद शुक्ल पंचमी तथा चैत्र शुक्ल पंचमी) के लगता है।
ये पशु चिकित्सक माने जाते है इसीलिए इनको ग्वालों के देवता या ग्वालों के पालनहार के रूप में जाना जाता है साथ ही ये गुर्जर जाति के आराध्य देवता है।
इनकी याद में 7 ग्वालों को भोजन करवाया जाता है।
इनके स्थान/थान हमेशा नीम के पेड़ के नीचे होते है।
लोक मान्यता के अनुसार इन्होंने अपने मृत्यु के बाद भी अपनी बहिन एलादि को भात भरा था।
11. तल्लीनाथ जी :-
12. जुंझार जी :-
इनका जन्म इमलोहा गांव (सीकर) में हुआ।
इनका मंदिर स्यालोदड़ा (सीकर) में है वहां रामनवमी के दिन मेला भरता है।
इनके मंदिर में एक दूल्हा, एक दुल्हन, और तीन भाइयों की मूर्तियों की पूजा की जाती है।
13. झरड़ा जी :-
झरड़ा जी पाबूजी महाराज के बड़े भाई बूढ़ो जी के पुत्र थे। इन्होंने जींदराव खींची की हत्या कर पिता व चाचा की हत्या का बदला लिया।
ये बाद में नाथ संप्रदाय से जुड़ जाते है फिर इनका नाम “रुपनाथ” हो जाता है।
इनके मंदिर कोलुमण्ड (जोधपुर), सिंभूदड़ा (बीकानेर) में है।
हिमाचल प्रदेश में भी इनकी पूजा की जाती है और इनको वहाँ बालकनाथ के नाम से जाना जाता है।
14. केसरिया कुंवर जी :-
ये गोगा जी के बेटे थे।
इनको सर्प रक्षक देवता कहा जाता है।
इनका थान (मंदिर) खेजड़ी वृक्ष के नीचे होता है तथा थान पर सफ़ेद रंग का ध्वज फहराते है।
15. हरिराम जी :-
ये सर्प रक्षक देवता है इनके मंदिर में सांप की बांबी (बिल) की पूजा होती है।
16. आलम जी :-
आलम जी जैतमालोत राठौड़ थे।
इन्हें घोड़ा रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है।
इनके मंदिर धोरीमन्ना , मालाणी (बाड़मेर) में है।
17. वीर फत्ता जी :-
इनका जन्म साथूं (जालौर) के गज्जाराणी परिवार में हुआ।
ये लुटेरों से गांव की रक्षा करते हुए शहीद हो गए।
भाद्रपद शुक्ल नवमी को इनका मेला लगता है।
18. मामा देव जी :-
मामा देव जी को बरसात के देवता माना जाता है।
ये एकमात्र ऐसे लोक देवता है जिनकी मूर्ति मिट्टी या पत्थर की न होकर लकड़ी का बना एक तोरण होता है जिसे गांव के बहार रखा जाता है और उसकी पूजा की जाती है।
इन्हें प्रसन्न करने के लिए भैंस की बलि दी जाती है।
इनका मंदिर स्यालोदड़ा (सीकर) तथा रामनवमी को यहाँ मेला लगता है।
19. डूंग जी – जवाहर जी :-
ये सीकर के बठोठ-पाटोदा गांव के कछवाहा वंश के राजपूत थे।
से सीकर जिले के लुटेरे लोकदेवता (धावड़िआ) थे जो अमीरों व अंग्रेजों से धन लूटकर गरीबों में बाँट देते थे।
इन्होंने आगरा की जेल तथा अंग्रेजों की नसीराबाद की छावनी लूटी।
इन्हें बलजी-भूरजी के उपनाम से भी जाना जाता है।
20. खेतला जी महाराज :-
इन्हें हकलाने वाले बच्चों के इलाज का देवता माना जाता है।
इनका मंदिर सोनाणा गांव (पाली) में है।
इनका मेला चैत्र शुक्ल एकम को लगता है।
21. भूरीया बाबा :-
इन्हें गौतम बाबा या बाबा गौतमेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। ये गोड़वाड़ मीणा जाति के आराध्य देवता है।
मीणा जाति के लोग इनकी झूठी कसम नहीं खाते।
भूरीया बाबा का प्रसिद्ध मंदिर पोसालिया गांव (सिरोही) में है जहाँ वर्दीधारी पुलिसकर्मियों का जाना मना है।
मीणा जाति के लोग गौतमेश्वर के मेले में सूकड़ी नदी में अपने पूर्वजों की अस्थियां प्रवाहित करते है।
22. इलोजी :-
ये जैसलमेर के पश्चिमी क्षेत्र के लोकप्रिय देवता है। इनका मंदिर इलोजी, जैसलमेर में स्थित है।
ऐसी मान्यता है की ये “होली के होने वाले पति” थे।
इन्हें छेड़छाड़ का देवता माना जाता है।
ऐसा माना जाता है की इनकी पूजा करने से अविवाहितों को दुल्हन, नव दम्पतियों को सुखद जीवन तथा बाँझ स्त्रियों को पुत्र प्राप्ति होती है।
23. भोमिया जी :-
इन्हें भूमि रक्षक देवता कहा जाता है।
जयपुर में नाहरसिंह जी भोमिया व दौसा दुर्ग के समीप श्री सूरजमल भोमिया का मंदिर सम्पूर्ण राज्य में प्रसिद्ध है।
इनका थान हर गांव में होता है।
24. वीर कल्ला जी राठौड़ :-
इनके बचपन का नाम केसरीसिंह था साथ ही इन्हें चार भुजा वाले देवता, योगी, दो सर वाले देवता, शेषनाग क अवतार, दो सिर वाले देवता, कल्याण, बाल-ब्रह्मचारी आदि नामों से भी जाना जाता है।
मीरा बाई इनकी बुआ तथा जयमल इनके चाचा थे।
नागणेची माता इनकी कुल देवी थी।
सिद्ध पीठ को “रनेला” कहते है।
1576 ई. में अकबर के विरुद्ध युद्ध करते हुए ये शहीद हो गए।
डूंगरपुर के सांवलिया गांव में इनकी काले रंग की पत्थर मूर्ति है जिस पर प्रतिदिन भीलों द्वारा केसर व अफीम चढ़ाई जाती है।
25. पंचवीर जी :-
ये शेखावाटी क्षेत्र के लोकप्रिय देवता है।
ये शेखावत समाज के कुल देवता है।
सीकर के अजीतगढ़ में इनका मंदिर बना हुआ है।
26. गालव ऋषि :-
1857 की क्रांति के समय से गालव ऋषि को लोक देवता के रूप में पूजा जाता है।
इनका मुख्य मंदिर जयपुर स्थित “गलता जी” को माना जाता है।
गलता जी को प्रचीन तीर्थ स्थान होने के कारण राजस्थान का बनारस भी कहा जाता है।
27. पनराज जी :-
इनका जन्म न्यायगांव, जैसलमेर में हुआ।
इन्होंने कठोड़ी गांव (जैसलमेर) में ब्राह्मण परिवार की गाय को मुस्लिम लुटेरों से बचते हुए अपनी जान गंवा दी।
जैसलमेर के पनराजसर गांव में इनका मुख्य मंदिर है।