संत – सत्य आचरण करने वाला एक पवित्र या आत्मज्ञानी व्यक्ति होता है जो विशेषतः दूसरों की मदद के लिए तत्पर रहता है और समाज में विभिन्न मूल्यों का विकास कर मानवीय जीवन को सफल बनाता है। प्राचीन काल से आधुनिक योग तक राजस्थान में अनेकों संत रूपी व्यक्ति हुए है। राजस्थान अध्ययन की इसी श्रेणी में हम राजस्थान के प्रमुख संत एवं संप्रदाय का अध्ययन करेंगे।राजस्थान के संत एवं संप्रदाय का अध्ययन करने से पहले हम कुछ महत्वपूर्ण शब्दावलियों के अर्थ को समझेंगे जो निम्न प्रकार है –
सगुण भक्ति- इसमें भगवान के साक्षात् रूप की पूजा होती है। भक्त भगवान के विशेष गुणों, लीलाओं, तथा रूपों को मानते है तथा उन्हें पाने की कोशिश करते है। इसमें भगवान की मूर्तियों की पूजा की जाती है। सूरदास, तुलसीदास तथा मीरा बाई जैसे संतों ने सगुण भक्ति की है।
निर्गुण भक्ति- इसमें भगवान के निराकार अर्थात गुण या आकर रहित रूप की पूजा की जाती है। इनके भक्तों का मानना है की कण-कण में भगवान व्याप्त है। कुछ विद्वानों के अनुसार निर्गुण भक्ति को भक्ति का सर्वोचय रूप माना गया है। कबीर तथा रहीम जैसे संतों ने निर्गुण भक्ति की है।
1. दादू दयाल जी –
2. जसनाथ जी –
3. जाम्भोजी –
4. चरणदास जी –
5. संत पीपा जी –
6. संत धन्ना जी –
7. संत माव जी –
8. हरिदास जी –
9. नवलदास जी –
10. बलानंदाचार्य जी –
11. भक्त कवि दुर्लभ जी –
12. संतदास जी –
13. स्वामी लाल गिरी जी –
14. मलूकनाथ जी –
15. राजाराम जी –
16. मीरा बाई –
17. राना बाई –
18. वल्लभ संप्रदाय –
19. गौड़ीय संप्रदाय –
20. निम्बार्क संप्रदाय –
21. परनामी संप्रदाय –
22. रामानंदी संप्रदाय –
23. रामस्नेही संप्रदाय –
24. नाथ संप्रदाय –