वस्त्र या कपड़ा, प्राकृतिक या कृत्रिम धागों से बनी मानवनिर्मित चीज़ है। ये हमारे दैनिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है जो हमें सर्दी, गर्मी, धूल, बरसात आदि से बचाते है। ये अलग-अलग भौगोलिक क्षैत्रों तथा पर्यावरण तथा संस्कृति के अनुसार अलग-अलग रूप के हो सकते है। ये हमारी संस्कृति के वाहक भी माने जाते है।राजस्थान अपने विशिष्ठ परिधानों या वेशभूषाओं के लिए विश्व प्रसिद्ध है। तो आइये हम राजस्थान की वेशभूषा का विस्तार से अध्ययन करते है।
राजस्थान में पुरुषों की वेशभूषा-
पगड़ी –
यह पुरुषों द्वारा सिर पर धारण करने वाला कुछ मीटर लम्बा और लगभग 30 से 40 मीटर चौड़ा कपडा होता है जिसे साफा, बागा (फेंटा), पेंचा आदि भी कहा जाता है। राजस्थान में इसे आन-बान और शान का प्रतिक मन जाता है। इसे पहनने के लिए तुर्रा, सरपेच, कलंगी, लटकन आदि का प्रयोग किया जाता है। मेवाड़ के पगड़ी तथा मारवाड़ का साफा प्रसिद्ध है। विभिन्न उत्सवों तथा भिन्न-भिन्न समुदायों द्वारा अलग-अलग प्रकार की पगड़ी पहनी जाती है। जैसे-मोठड़े की पगड़ी (विवाह), लहरिया पगड़ी (श्रावण), भदील पगड़ी (दशहरा), पट्टेदार पगड़ी (बंजारे) आदि। उदयशाही, अमरशाही, विजयशाही और शाहजहांनी पगड़ी की कुछ प्रमुख शैलियाँ हैं।
धोती –
यह पुरुषों की पारम्परिक वेशभूषा है। यह कमर के नीचे पहने जाने वाला लगभग 4 मीटर लम्बा तथा लगभग 1 मीटर चौड़ा कपडा होता है।
अंगरखी –
ग्रामीण क्षेत्र में पुरुषों के शरीर के ऊपरी भाग में पहना जाने वाला वस्त्र है। इसमें एक जेब लगी होती है। यह पूरी बाँहों का बिना कॉलर एवं बटन वाला चुस्त कुर्ता है। इसे बुगतरी, तनसुख, दुतई, गाबा, गदर, मिरजाई आदि नामों भी जाना जाता है।
अचकन –
यह अंगरखी का संशोधित रूप है जो पुरूषों द्वारा शरीर के ऊपरी भाग में पहना जाता है। यह घुटनों तक लम्बा होता है। मुस्लिम समुदाय में अत्यधिक प्रचलित है।
बिरजस या ब्रीचेस –
यह चूड़ीदार पायजामे के स्थान पर पहना जाने वाला वस्त्र है। यह पैरों से घुटनों तक तंग तथा फिर कमर तक खुला घेरदार होता है। यह घुड़सवारी के अनुकूल है।
आतमसुख –
यह मुख्यतः तेज सर्दी में ओढ़ा जाने वाला और अंगरखी पर पहना जाने वाला वस्त्र है। इसकी तुलना कश्मीरी फिरन से की जा सकती है। सबसे पुराना आतमसुख सिटी पैलेस, जयपुर में रखा है।
कमरबंद या पटका –
यह कमर पर बांधे जाने वाली पट्टीनुमा वस्त्र है जिसमें तलवार आदि रखी जाती है।
पछेवड़ा –
यह मोटी कंबल की तरह का वस्त्र होता है जिसे सर्दी से बचने के लिए पुरूषों के द्वारा ओढ़ा जाता है।
नोट :- उपर्युक्त के अलावा ‘तनसुख’, ‘घूघी’, ‘गदर’, ‘चोगा’, ‘ठेपाड़ा/ढेपाडा’, ‘अंगोछा’, ‘गाबा’, ‘खोयतू’, ‘डोढ़ी’, ‘पोतिया’ आदि पुरूषों के वस्त्र है।
राजस्थान में महिलाओं की वेशभूषा-
ओढ़नी-
यह स्त्रियों के सिर पर ओढ़े जाने वाला वस्त्र है जो शरीर को ढकता है। ओढ़नी विभिन्न प्रकार की होती है जिसमें 3 प्रकार मुख्य है –
(क) पोमचा- यह नवजात शिशु कि माँ द्वारा ओढ़ी जाती है जो उसके मातृ पक्ष की और से आती है। लड़के के जन्म पर पीले रंग का तथा लड़की के रंग पर लाल रंग का ओढ़ना औढ़ा जाता है। शेखावाटी क्षेत्र में इसे पीला भी कहते है।
(ख) लहरिया- यह श्रावण मास में तीज तथा फाल्गुन मास में होली के अवसर पर औढ़ा जाता है। यह लाल एवं नीले रंग की लहरदार औढनी होती है जिस पर कसीदकारी की जाती है (दामड़ी) । प्रतापशाही लहरिया, राजशाही लहरिया, समुद्र लहरिया इसके कुछ मुख्य प्रकार है।
(ग) लूगड़ा- लूगड़ा विवाहित स्त्रियों द्वारा औढ़ा जाता है।
तिलका-
यह आधुनिक गाउन जैसा होता है जिसे मुस्लिम स्त्रियों का द्वारा पहना जाता है।
नोट :- उपर्युक्त के अलावा ‘मोठड़ा’, ‘कटकी’, ‘आँगी’, ‘कुर्ती – कांचली’, ‘कापड़ी’, ‘एरंडी’, ‘चूनड़’, ‘नान्दणा या नाँदड़ा’, ‘रेनसाई’ आदि स्त्रियों के वस्त्र है।