आपका हमारी वेबसाइट rajasthanigyan.com में स्वागत है। आज हम मेवाड़ का इतिहास IV (महाराणा प्रताप) के बारे में विस्तार से अध्ययन करेंगे। हमारी इस वेबसाइट पर आपको राजस्थान राज्य की सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में आने वाले महत्वपूर्ण Topics की आसान और सरल भाषा में जानकारी मिलती है।
महाराणा प्रताप (1572 – 97)
- उदयसिंह ने अपने बड़े बेटे प्रताप को राजा नहीं बनाया बल्कि छोटे बेटे जगमाल को राजा बना दिया।
- कृष्णदास चुण्डावत (सलूम्बर) ने गोगुन्दा में प्रताप का राजतिलक किया।
- कुम्भलगढ़ में प्रताप का राजतिलक समारोह मनाया गया। मारवाड़ के चन्द्रसेन ने इस समारोह में भाग लिया।
- प्रताप के साथ संधि ने लिए अकबर ने चार दूत भेजे – जलाल खां कोरची, मानसिंह, भगवंतदास और टोडरमल
* यह युद्ध 18 जून 1576 (गोपीनाथ शर्मा के अनुसार 21 जून) को प्रताप और अकबर के बीच हुआ।
* इस युद्ध में कृष्णदास चुण्डावत (सलूम्बर), रामशाह तोमर (ग्वालियर), हकीम खां सूर (अफगान) और राणा पूंजा (भील सेना) प्रताप के सेनापति थे।
* अकबर की तरफ से मानसिंह तथा आसफ खां युद्ध के मैदान में थे। मानसिंह पहली बार इस युद्ध में एक स्वतंत्र सेनापति के रूप में भाग ले रहे थे।
* मिहतर खां नामक मुग़ल सैनिक ने युद्ध में अकबर के आने की झूठी सूचना दी।
* चेतक ने घायल होने के कारण प्रताप को युद्धभूमि से बाहर जाना पड़ा और झाला बिदा (मान) ने युद्ध का नेतृत्व किया।
* मानसिंह प्रताप को अकबर की अधीनता स्वीकार करवाने में असफल रहा अतः अकबर ने मानसिंह तथा आसफ खां का दरबार में आना बंद कर दिया।
* 1576 ई. में अकबर स्वयं मेवाड़ पर आक्रमण कर देता है।
* अकबर ने उदयपुर का नाम बदलकर मुहम्मदाबाद कर दिया तथा इसे जगन्नाथ कछवाहा तथा सैयद फखरुद्दीन को सौंप दिया और अकबर वागड चला गया।
* मुग़ल सेनापति शाहबाज खां ने कुम्भलगढ़ पर तीन बार आक्रमण किया था। (1577, 78, 79)
- यह एक साम्राज्यवादी शक्ति तथा प्रादेशिक स्वतंत्रता के बीच संघर्ष था।
- इस युद्ध ने मुगलों की अजेयता की छवि को तोड़ दिया।
- काम संसाधनों के बावजूद प्रताप ने अकबर का सामना किया जिससे मेवाड़ की जनता में आशा व नैतिकता का संचार हुआ।
- यह युद्ध मेवाड़ की जनता तथा जनजातियों में राष्ट्रवाद की भावना का संचार करता है।
- आज भी हल्दीघाटी का युद्ध राष्ट्रवादियों के लिए प्रेरणास्त्रोत का कार्य करता है।
***शेरपुर घटना – अमर सिंह ने मुग़ल सेनापति अब्दुल रहीम की बेगमों को गिरफ्तार कर लिया था लेकिन प्रताप ने उन्हें ससम्मान वापस पहुँचाया।
* विजय दशमी के दिन प्रताप ने मुग़ल सेना को हराया।
* अमरसिंह ने मुग़ल सेनापति सुल्तान खां को मार दिया।
* ईडर, बांसवाड़ा तथा प्रतापगढ़ रियासतों ने मेवाड़ का साथ दिया।
* जेम्स टॉड ने इसे “मेवाड़ का मैराथन” कहा।
## 1585 ई. में जगन्नाथ कछवाहा ने मेवाड़ पर आक्रमण किया। यह अकबर की तरफ से प्रताप पर अंतिम आक्रामण था।
## प्रताप ने आमेर सियासत पर आक्रमण किया और मालपुरा पर अधिकार कर लिया।
## चित्तौडग़ढ़ तथा मांडलगढ़ को छोड़कर प्रताप ने सम्पूर्ण मेवाड़ पर पुनः अधिकार कर लिया।
प्रताप की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ
- इन्होंने मालपुरा में झालरा तालाब तथा नीलकंठ महादेव मंदिर बनवाया।
- चावंड को अपनी स्थाई राजधानी बनाया और यहाँ चामुंडा माता का मंदिर, महल, बावड़ी का निर्माण करवाया।
- मेवाड़ चित्रकला का स्वतन्त्र विकास प्रारम्भ हुआ।
दरबारी विद्वान्
- चक्रपाणि मिश्र – “राज्याभिषेक”, “मुहूर्तमाला”, “विश्व वल्लभ” (बागवानी की जानकारी)
- हेमरत्न सूरी – “गौरा बादल पद्मिनी चौपाई”
- सदुलनाथ त्रिवेदी – प्रताप ने इन्हें मंडौर नामक गांव दान में दिया था। यह जानकारी 1588 ई. के उदयपुर अभिलेख से मिलती है।
- माला सांदू
- रामा सांदू
*** 19 जनवरी 1597 को चावंड में प्रताप की मृत्यु हो गई।
भामाशाह तथा ताराचंद – इन्होंने “चूलिया” नामक गांव में प्रताप से मुलाकात की तथा प्रताप की आर्थिक सहायता की। अब प्रताप 25000 सैनिकों को 12 वर्ष तक रख सकते थे। प्रताप ने भामाशाह को अपना प्रधानमंत्री बनाया। भामाशाह को “मेवाड़ का उद्धारक” कहा जाता है।