मेवाड़ का इतिहास

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मेवाड़ का इतिहास


मेवाड़ का इतिहास


बापा रावल

  • इनका वास्तविक नाम कालभोज था।
  • ये हरित ऋषि के शिष्य थे।
  • 734 ई. में मान मोर्य को हराकर इन्होंने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया।
  • इन्होंने अपनी राजधानी नागदा को बनाया और वहां एकलिंग मंदिर का निर्माण करवाया क्योंकि मेवाड़ के राजा खुद को एकलिंग का दीवान मानते थे।
  • इन्होंने मेवाड़ में 115 ग्रेन के सोने के सिक्के चलाये।
  • ये मुस्लिम सेना को हारते हुए गजनी तक चले गए और गजनी के राजा सलीम को हटा दिया तथा अपने भांजे को वहां का राजा बना दिया।
  • इतिहासकार सी. वी. वैद्य ने इनकी तुलना फ्रांसीसी सेनापति चार्ल्स मार्टल से की।
  • बापा रावल के के सैनिक शिविर के कारण पाकिस्तान के ‘रावलपिंडी’ शहर का नामकरण हुआ।
  • “हिन्दू सूरज, राजगुरु, चक्कवै” बापा रावल की उपाधियाँ थी।

अल्लट (आलुरवाल)

सारणेश्वर प्रशस्ति (953 ई.) के अनुसार

  • अल्लट ने आहड़ को दूसरी राजधानी के रूप में स्थापित किया।
  • आहड़ में वराह मंदिर का निर्माण करवाया।
  • यहाँ कर व्यवस्था तथा प्रशासनिक व्यवस्था की जानकारी मिलती है।

आमात्य – मुख्यमंत्री / प्रधानमंत्री
अक्षपटलिक – आय- व्यय का अधिकारी
संधि विग्रहक – युद्ध एवं शांति का मंत्री
भिषगाधिराज – राजवैद्य
बंदिपति – राजा की प्रशंसा करने वाला

शक्तिकुमार के आटपुर अभिलेख (977 ई.) के अनुसार हूण रानी हरिया देवी ने हर्षपुर नामक गांव की स्थापना की।


जैत्र सिंह (1213 – 1253)

इतिहासकार दसरथ शर्मा के अनुसार जैत्र सिंह का शासनकाल मध्यकालीन मेवाड़ का स्वर्णकाल था।

मेवाड़ का इतिहास

  • जयसिंह सूरी की पुस्तक “हम्मीर मद मर्दन” से भूताला युद्ध की जानकारी मिलती है। इस पुस्तक में इल्तुतमिस को हम्मीर कहा गया है।
  • यह युद्ध जैत्रसिंह और इल्तुतमिश के बीच हुआ।
  • जैत्र सिंह इस युद्ध में जीत गया। बालक तथा मदन इस युद्ध में जैत्र सिंह के सेनापति थे।
  • इल्तुतमिस की लौटती हुई सेना ने नागदा को तोड़ दिया था। अतः जैत्र सिंह ने चित्तौड़ को अपनी राजधानी बनाया।

रतनसिंह (1302 – 03)

कुम्भकर्ण
यह रतनसिंह का छोटा भाई था। यह नेपाल चला गया और वहां पर गुहिल वंश की राणा शाखा का शासन स्थापित किया।
पद्मिनी
यह रतनसिंह की रानी थी और सिंघल द्वीप की राजकुमारी थी।
इनके पिता का नाम गंधर्वसेन और माता का नाम चम्पावती था।
राघव चेतन नामक ब्राह्मण ने अलाउद्दीन को पद्मिनी की सुंदरता के बारे में बताया था।
1540 ई. में मालिक मुहम्मद जायसी ने अवधि भाषा में “पद्मावत” नामक पुस्तक लिखी।

मेवाड़ का इतिहास

आक्रमण के कारण

  1. अलाउद्दीन अपना साम्राज्य विस्तार करना चाहता था। वह पहले ही रणथम्भौर किले (1301 ई.) पर अपना अधिकार जमा चुका था।
  2. चित्तौड़ का किला अपने सामरिक महत्व के लिए प्रसिद्ध था।
  3. चित्तौड़ दिल्ली से गुजरात तथा मालवा के व्यापारिक मार्ग पर स्थित था।
  4. गुजरात आक्रमण के दौरान मेवाड़ के समरसिंह ने अलउद्दीनग से कर वसूला था। अतः अलाउद्दीन बदला लेना चाहता था।
  5. अलाउद्दीन मेवाड़ के बढ़ती हुई शक्तियों को नियंत्रित करना चाहता था।
  6. रानी पद्मिनी की सुंदरता।
  • 1303 ई. में चित्तौड़ का पहला साका हुआ। रानी पद्मिनी ने 1600 अन्य महिलाओं के साथ जौहर किया। रतनसिंह के नेतृत्व में केसरिया किया गया जिसके सेनापति गौरा और बादल थे।
  • 25 अगस्त 1303 को अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया तथा वहां 30 हजार लोगों का कत्लेआम किया गया। अलाउद्दीन ने अपने पुत्र खिज्र खां को चित्तौड़ सौंप दिया तथा इसका नाम बदलकर खिज्राबाद कर दिया।
  • धाईबी पीर की दरगाह के अभिलेख में चित्तौड़ का नाम खिज्राबाद दिया गया है।
  • खिज्र खां ने गंभीरी नदी पर पुल का निर्माण करवाया।
  • खिज्र खां ने चित्तौड़ में मकबरे का निर्माण करवाया। मकबरे के अभिलेख में अलाउद्दीन को दूसरा सिकंदर, ईश्वर की छाया तथा संसार का रक्षक कहा गया है।
  • थोड़े समय के बाद अलाउद्दीन ने यह किला मालदेव सोनगरा को सौंप दिया। मालदेव सोनगरा को मूंछाला मालदेव भी कहा जाता है। यह जालौर के राजा कन्हड देव का छोटा भाई था।

हम्मीर (1326 – 64)

  • इसने बनवीर सोनगरा को हराकर चित्तौड़ पर अधिकार किया।
  • इसे “मेवाड़ का उद्धारक” कहा जाता है।
  • यह सिसोदा गांव का था। अतः यहाँ से गुहिल वंश की सिसोदिया शाखा का शासन प्रारम्भ हुआ।
  • इसने राणा की उपाधि का प्रयोग किया। अतः रतनसिंह मेवाड़ का अंतिम राजा था जिसने रावल की उपाधि का प्रयोग किया था।
  • सिंगोली के युद्ध में हम्मीर ने मुहम्मद बिन तुगलक को हराया था।
  • हम्मीर ने चित्तौड़ में बरबडी माता (अन्नपूर्णा माता) का मंदिर बनवाया। यह माता मेवाड़ के गुहिल वंश की ईष्ट देवी थी। जबकि बाण माता इनकी कुलदेवी थी।
  • हम्मीर को विषमघाटी पंचानन, वीर राजा और प्रबल हिन्दू की उपाधियाँ प्राप्त थी।

राणा लाखा (लक्षसिंह) (1382 – 1421)

  • जवार में चांदी की खान प्राप्त हुई।
  • एक बंजारे ने पिछोला झील का निर्माण करवाया था। इस झील के पास “नटनी का चबूतरा” बना हुआ है।
  • कुम्भा हाडा नकली बूंदी की रक्षा करता हुआ मारा गया।
  • मारवाड़ के राजा चूंडा ने अपनी राजकुमारी हंसाबाई का विवाह मेवाड़ के राणा लाखा से किया।
  • इस समय राणा लाखा के बेटे चूंडा ने प्रतिज्ञा की कि वह मेवाड़ का अगला राजा नहीं बनेगा बल्कि हंसाबाई के बेटे को मेवाड़ का अगला राजा बनाया जायेगा।
  • इसीलिए चूंडा को “मेवाड़ का भीष्म” कहा जाता है। इस त्याग के कारण चूंडा को मेवाड़ का सबसे बड़ा ठिकाना सलूम्बर दिया गया।
  • सलूम्बर के सामंत को कई विशेषाधिकार दिए गए जैसे –

वह मेवाड़ के राजा का राजतिलक करेगा।
वह मेवाड़ के राणा के साथ सभी कागजों पर हस्ताक्षर करेगा।
वह राणा की अनुपस्थिति में राजधानी संभालेगा।
वह हमेशा मेवाड़ की सेना का सेनापति होगा।


मोकल (1421 – 33)

  • इनके पिता का नाम लाखा सिंह तथा माता का नाम हंसाबाई था।
  • चूंडा इनका संरक्षक बना लेकिन हंसाबाई के अविश्वास के कारण चूंडा मालवा चला गया। उस समय मालवा का सुल्तान होशंगशाह था।
  • हंसाबाई का भाई रणमल इनका दूसरा संरक्षक बना।
  • मोकल ने एकलिंग मंदिर का परकोटा बनवाया।
  • इन्होंने चित्तौड़ में समिद्धेश्वर मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। पहले इस मंदिर को त्रिभुवन नारायण मंदिर कहा जाता था और भोज परमार ने इसका निर्माण करवाया था।
  • 1433 ई. में गुजरात के अहमदशाह ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया। इसी का सामना करने मोकल गया परन्तु जिलवाड़ा (राजसमंद) नामक स्थान पर चाचा, मेरा तथा महपा पंवार ने मोकल की हत्या कर दी।

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