आपका हमारी वेबसाइट rajasthanigyan.com में स्वागत है। आज हम मारवाड़ का इतिहास के बारे में विस्तार से अध्ययन करेंगे। हमारी इस वेबसाइट पर आपको राजस्थान राज्य की सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में आने वाले महत्वपूर्ण Topics की आसान और सरल भाषा में जानकारी मिलती है।
राव सीहा
- इन्हें “राजस्थान के राठौड़ों का आदि पुरुष” कहा जाता है।
- पालीवाल ब्राह्मणों की सहायता के लिए 1240 ई. में बदायूं (उत्तरप्रदेश) से मारवाड़ आया।
- इन्होंने खेड़, बाड़मेर को अपनी राजधानी बनाया।
- बिठू में राव सीहा की छतरी है।
राव धुहड़
- ये अपनी कुलदेवी नागणेची माता की मूर्ति कर्नाटक से लाये और नागाणा गांव में स्थापित किया।
मल्लिनाथ जी
- इन्होंने मेवानगर, बाड़मेर को अपनी राजधानी बनाया।
- इन्होंने 1378 ई. में मालवा के गवर्नर निजामुद्दीन की 13 रेजिमेंट को हराया।
- इन्हें पश्चिमी राजस्थान में लोक देवता के रूप में पूजा जाता है।
- इनके नाम से ही बाड़मेर क्षेत्र को मालाणी क्षेत्र कहा जाता है।
राव चूंडा
- प्रतिहार राजकुमारी इन्दा का इनसे विवाह हुआ और मंडौर इनको दहेज़ में मिला। राव चूंडा ने इसे अपनी राजधानी बनाया।
- इनकी रानी चाँद कँवर ने जोधपुर में चाँद बावड़ी का निर्माण करवाया।
- पूगल के भाटियों के खिलाफ लड़ते हुए इनकी मृत्यु हो गई।
- इन्होंने अपने बड़े बेटे रणमल को राजा न बनाकर अपने छोटे बेटे कान्हा को राजा बना दिया। कालांतर में मेवाड़ सेना की सहायता से रणमल मारवाड़ का राजा बना।
राव जोधा (1438 – 89)
- इन्होंने 1459 ई. में जोधपुर की स्थापना की तथा मेहरानगढ़ किले का निर्माण करवाया।
- मेहरानगढ़ किले की नींव करनी माता ने रखी (करनी माता रणमल की धर्म बहिन थी)
- 1460 ई. में मेहरानगढ़ में चामुंडा माता का मंदिर बनाया।
- इनकी रानी जसमादे ने जोधपुर में रानीसर तालाब बनवाया।
- इन्होंने दिल्ली के सुल्तान बहलोल लोदी को हराया।
- गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने जोधा को मारवाड़ का पहला प्रतापी राजा बताया।
- इनके बेटे राव बिका ने बीकानेर में तथा दूदा ने मेड़ता में राठौड़ राज्य की स्थापना की।
मालदेव
- इनके पिता का नाम गांगा तथा इनकी माता का नाम पद्मा कुमारी था जो सिरोही के जगमाल देवड़ा की पुत्री थी।
- मालदेव अपने पिता की हत्या कर मारवाड़ के राजा बने।
- राजतिलक के समय मालदेव के पास केवल दो परगने जोधपुर तथा सोजत थे।
- मालदेव ने अपने शासनकाल में 52 युद्ध तथा 58 परगने जीते।
यह युद्ध मालदेव तथा बीकानेर के राजा जैतसी के बीच हुआ।
इस युद्ध में जैतसी मारा गया और मालदेव जीत गया।
मालदेव ने कुम्पा राठौड़ को बीकानेर सौंपा।
जैतसी के बेटे कल्याणमल ने शेरशाह सूरी से सहायता मांगी।
***मालदेव ने दरियाजोश हाथी को लेकर विवाद में वीरमदेव से मेड़ता छीना।
मालदेव – हुमांयूँ संबंध
- शेरशाह सूरी से हारने के बाद हुमांयूँ मारवाड़ से होकर जा रहा था। जोगितीर्थ नमक स्थान से उसने शेरशाह सूरी के खिलाफ सहायता के लिए मालदेव के पास तीन दूत अतका खां, मीर समंद और रायमल सोनी को भेजा।
- मालदेव ने सकारात्मक उतर में बीकानेर में रहने की जगह तहत सैन्य सहायता देने का वादा किया।
- लेकिन हुमांयूँ मालदेव पर विश्वास नहीं कर सका और अपने पुस्तकालय अध्यक्ष मुल्ला सुर्ख के कहने पर वह सिंध चला गया।
- यदि मालदेव व हुमांयूँ थोड़ी समझदारी दिखते तो वे शेरशाह सूरी के खिलाफ एक गठबंधन बना सकते थे तथा अफगान शासन को भारत से समाप्त कर सकते थे।
- कालांतर में अकबर ने मुग़ल – राजपूत संबंधों की शुरुआत की थी वे संबंध इस समय प्रारम्भ हो सकते थे।
यह युद्ध मालदेव तथा शेरशाह सूरी के बीच हुआ। इसमें मालदेव के सेनापति जैता और कुम्पा थे और शेरशाह की तरफ से बीकानेर के कल्याणमल और मेड़ता के वीरमदेव लड़े।
शेरशाह की चालाकी के कारण मालदेव युद्ध से पहले ही जोधपुर चला गया तथा जैता और कुम्पा ही शेरशाह के खिलाफ युद्ध में लड़े।
जलाल खां लावनी की सहायता से शेरशाह युद्ध जीत गया।
इस युद्ध को जीतने के बाद शेरशाह ने कहा कि “मैं मुट्ठी भर बाजरे के लिए हिंदुस्तान की बादशाहत खो देता “
शेरशाह ने जोधपुर पर अधिकार कर लिया और खवास खां को जोधपुर सौंप दिया जिस पे मालदेव ने पुनः अधिकार कर लिया।
उमादे
- यह जैसलमेर के लूणकरण भाटी की राजकुमारी तथा मालदेव की रानी थी।
- भारमली नमक दासी के कारण यह मालदेव से नाराज हो गई अतः इसे रूठी रानी कहा जाता है।
- इसने अपना कुछ समय अजमेर के तारागढ़ किले में बिताया लेकिन बाद में केलवा चली गई।
मालदेव की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ
- जोधपुर में परकोटे का निर्माण
- सोजत, पोकरण, रियाँ और मेड़ता आदि किलों का निर्माण
- रानी स्वरुपदे ने जोधपुर में बहू जी रो तालाब बनवाया
दरबारी विद्वान्
- आशानंद जी –
पाहेबा के युद्ध में भाग
“उमादे भट्याणी रा कवित”
“बाघा- भारमली रा दूहा”
“गोगाजी री पेड़ी” - ईसरदास जी –
पश्चिमी राजस्थान के लोक देवता
“हाला झाला री कुंडलियां”
“देवियाण”
“हरिरस”
मालदेव की उपाधियाँ
- हिन्दू बादशाह
- हशमत वाला राजा
***मालदेव ने अपने बड़े बेटों राम तथा उदयसिंह को राजा नहीं बनाया परन्तु अपने छोटे बेटे चन्द्रसेन को राजा बना दिया।
चन्द्रसेन (1562 – 81 ई.)
- इसने राम को नाडौल तथा उदयसिंह को लोहावट के युद्ध में हराया।
- राम अकबर के पास चला गया। 1564 ई. में अकबर ने राम की सहायता के लिए हुसैन कुली बेग को भेजा और चन्द्रसेन भाद्राजूण चला गया।
- 1570 ई. के नागौर दरबार में चन्द्रसेन गया था लेकिन अकबर का झुकाव उदयसिंह की तरफ देखकर वह अकबर से बिना मिले ही वापस चला गया था। अतः अकबर ने भाद्राजूण पर आक्रमण कर दिया। इस समय चन्द्रसेन सिवाणा चला गया।
- 1574 ई. में अकबर ने बीकानेर के राजा रायसिंह को चन्द्रसेन पर आक्रमण के लिए भेजा। रायसिंह ने कल्ला राठौड़ को हराकर सोजत किले पर अधिकार कर लिया लेकिन सिवाणा में पत्ता राठौड़ को हारने में नाकाम रहा।
- 1576 ई. में अकबर के सेनापति शाहबाज खान ने सिवाणा के किले पर अधिकार कर लिया। इसी वर्ष चन्द्रसेन को पोकरण किला जैसलमेर के हरराज को बेचना पड़ा।
- रामपुरा क्षेत्र में चन्द्रसेन ने मुगल सेनापति जलाल खां को हराया।
- 1581 ई. में सारन की पहाड़ियों में सींचियाई नामक गांव में चन्द्रसेन की मृत्यु हो गई।
- चन्द्रसेन ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की थी और वह आजीवन अकबर से संघर्ष करता रहा।
- सुखराज, देवीदास और सुजा चन्द्रसेन के सहयोगी थे।
चन्द्रसेन की उपाधियाँ
- मारवाड़ का प्रताप – विश्वेश्वर नाथ रेउ के अनुसार
- प्रताप का अग्रगामी
- मारवाड़ का भुला बिसरा राजा
चन्द्रसेन तथा प्रताप में समानताएं
- दोनों ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की।
- दोनों ने छापामार युद्ध (गुरिल्ला) प्रणाली का प्रयोग किया।
- दोनों को अपने भाइयों के विरोध का सामना करना पड़ा जैसे चन्द्रसेन को अपने भाई राम और उदयसिंह तथा प्रताप को अपने भाइयों जगमाल और सगर से।
- दोनों के अधिकांश राज्य पर अकबर ने अधिकार कर लिया लेकिन फिर भी थोड़ी सी भूमि के बल पर वे संघर्ष करते रहे।
- दोनों को अपने राज्य के बाहर शरण लेनी पड़ी। प्रताप ने छप्पन के मैदान (बांसवाड़ा) में शरण ली और चन्द्रसेन को डूंगरपुर के राजा आसकरण ने शरण दी।
चन्द्रसेन तथा प्रताप में असमनताएँ
- प्रताप का मुगल विरोध उसके राजतिलक के साथ ही प्रारम्भ हो गया था लेकिन चन्द्रसेन का मुगल विरोध नागौर दरबार के बाद प्रारम्भ हुआ।
- प्रताप का मुग़ल विरोध उसके मरने के बाद भी उसके बेटे अमरसिंह ने जारी रखा लेकिन चन्द्रसेन का मुग़ल विरोध उसकी मृत्यु के साथ ही समाप्त हो गया।
- प्रताप ने अकबर का प्रत्यक्ष सामना किया (हल्दीघाटी तथा दिवेर) बल्कि चन्द्रसेन ऐसा नहीं कर पाया।
- प्रताप ने चावंड में अपना स्थाई केंद्र बनाया लेकिन चन्द्रसेन ऐसा कोई केंद्र स्थापित नहीं कर पाया।
- प्रताप में अपनी जनता में राष्ट्रवादी भावनाओं का संचार किया लेकिन चन्द्रसेन ऐसा नहीं कर सका।
- 1570 ई. में इसका आयोजन अकबर ने किया।
- इसका घोषित उद्देशय अकाल राहत कार्य था लेकिन इसका वास्तविक उद्देशय राजस्थान के राजाओं को अधीनता स्वीकार करवाना था।
- राजस्थान के कई राजाओं ने इसमें अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली जिसमें बीकानेर के कल्याणमल, जैसलमेर के हरराज और चन्द्रसेन के भाई उदयसिंह शामिल है।
- नागौर में शुक्र तालाब का निर्माण करवाया गया।
***अकबर ने बीकानेर के राजकुमार रायसिंह को जोधपुर का प्रशासक बनाया (1572 – 74 ई.)
मोटा राजा उदयसिंह (1583 – 95 ई.)
- ये मारवाड़ के पहले राजा थे जिन्होंने मुगल अधीनता स्वीकार की।
- इन्होंने अपनी राजकुमारी मनीबाई (जोधाबाई) का विवाह जहांगीर से किया। मनीबाई को ‘जगत गोंसाई’ की उपाधि प्राप्त थी। इनके पुत्र का नाम खुर्रम था।
कल्ला रायमलोत
- यह उदयसिंह के भाई रायमल का बेटा था।
- यह सिवाणा का सामंत था।
- 1589 ई. में अकबर ने सिवाणा पर आक्रमण कर दिया और सिवाणा का दूसरा साका हुआ जिसमे भान कंवर ने जौहर किया और कल्ला रायमलोत के नेतृत्व में केसरिया किया गया।
- पृथ्वीराज राठौड़ ने इसके मरसिये लिखे।
गज सिंह (1615 – 38 ई.)
- जहांगीर ने इनको “दलथम्भन” की उपाधि दी।
- अनारा बेगम के कहने पर इसने अपने छोटे बेटे जसवंतसिंह को जोधपुर का राजा बना दिया तथा बड़े बेटे अमरसिंह को नागौर दिया गया।
अमर सिंह राठौड़
- ये नागौर के राजा थे।
* यह अमरसिंह तथा बीकानेर के राजा करणसिंह के बीच हुई। इसमें करणसिंह की जीत हुई।
* यह लड़ाई नागौर के जखनिया गांव के किसान तथा बीकानेर के सीलवा गांव के किसान के खेत से शुरू हुई।
* काशी छंगाणी की पुस्तक “छत्रपति रासो” से इस युद्ध की जानकारी मिलती है।
- शाहजहां के दरबार में अमरसिंह ने मीर बक्शी सलावत खां को मार दिया था। अमरसिंह को “कटार का धणी” कहा जाता है।
- अमरसिंह की हत्या उसके साले अर्जुन सिंह गौड़ ने कर दी। इनकी छतरी नागौर में है जो 16 खम्भों की है।
- आगरा किले का बुखारा दरवाजा “अमरसिंह दरवाजा” कहलाता है। शाहजहां ने इस दरवाजे को बंद करवा दिया। 1809 ई. में जॉर्ज स्टील ने इस दरवाजे को खुलवाया।
जसवंतसिंह (1638 – 78 ई.)
- इन्होंने मुग़ल उत्तराधिकार संघर्ष में भाग लिया।
- यह धरमत के युद्ध में दारा की तरफ से औरंगजेब के खिलाफ लड़ता है।
- खजवा के युद्ध में ये सूजा के खिलाफ औरंगजेब की तरफ से लड़े।
- 1662 ई. में औरंगजेब ने जसवंतसिंह को शाइस्ता खां की सहायता के लिए दक्षिण भारत भेजा।
- 1673 ई. में जसवंतसिंह को काबुल भेज दिया गया।
- 1678 ई. में जमरूद का थामा में इनकी मृत्यु हो गई। इनकी मृत्यु पर औरंगजेब ने कहा कि “आज कुफ्र का दरवाजा टूट गया। “
पृथ्वीसिंह
ये जसवंतसिंह के बेटे थे।
इनकी शेर के साथ लड़ाई हुई थी।
औरंगजेब ने इन्हें जहरीले कपडे देकर मार दिया।
अजीतसिंह एवं दलथम्भन
ये जसवंतसिंह के बेटे थे।
औरंगजेब ने इन्हें दिल्ली में रूप सिंह राठौड़ की हवेली में नजरबन्द कर दिया था।
इन्द्रसिंह राठौड़
ये नागौर के राजा थे।
36 लाख रूपए लेकर औरंगजेब ने इन्हें जोधपुर का प्रशासक बना दिया था लेकिन जोधपुर की जनता ने इसे स्वीकार नहीं किया।
जसवंतसिंह की सांस्कृतिक उपलब्धियां
# इन्होने महाराष्ट्र में जसवंतपुरा नगर बसाया
# जोधपुर में अनार के बगीचे लगवाए
# इनकी रानी जसवंतदे ने जोधपुर में राइका बाग महल का निर्माण करवाया।
# इनकी रानी अतिरंगदे ने जोधपुर में शेखावत जी का तालाब बनवाया।
जसवंतसिंह की पुस्तकें
- भाषा भूषण
- आनंद विलास
- प्रबोध चंद्रोदय
- अपरोक्ष सिद्धान्तसार
दरबारी विद्वान्
- नरहरिदास – अवतार चरित
- नवीन – नेहनिधान
- मुहणौत नैणसी – नैणसी री ख्यात , मारवाड़ रा परगना री विगत
अजीतसिंह (1679 – 1724 ई.)
- दुर्गादास राठौड़ मुकुंददास खींची तथा गौरा की सहायता से अजीतसिंह को मारवाड़ लेकर आये।
- गौरा को मारवाड़ की पन्ना धाय कहा जाता है। मारवाड़ के राष्ट्रगान “धुंसो” में गौरा का नाम लिया जाता है।
- अजीतसिंह को कालिन्द्री गांव में जयदेव पुरोहित के घर रखा गया।
- औरंगजेब ने नकली अजीतसिंह का नाम बदलकर मुहम्मदीराज कर दिया था तथा इसे अपनी बेटी जेबुनिसा को सौंप दिया।
# इसमें औरंगजेब ने मेवाड़ तथा मारवाड़ की संयुक्त सेना को हराया था।
# दुर्गादास तथा राजसिंह ने औरंगजेब के बेटे अकबर को विद्रोह के लिए उकसया।
# 01. जनवरी 1681 ई. को अकबर ने नाडौल में खुद को मुग़ल बादशाह घोषित कर दिया।
# औरंगजेब की चालाकी के कारण दुर्गादास तथा अकबर को दक्षिण भारत में शम्भाजी के पास जाना पड़ा।
बुलंद अख्तर एवं सफियतुनिसा
- ये अकबर के पुत्र एवं पुत्री थे।
- दुर्गादास राठौड़ ने इनका पालन पोषण किया था।
- कालांतर में ईश्वरदास नागर के कहने पर दुर्गादास ने इन्हें औरंगजेब को सौंप दिया था।
1708 ई. में देबारी समझौते के बाद अजीतसिंह मारवाड़ का राजा बना। अजीतसिंह ने दुर्गादास राठौड़ को देश निकाला दे दिया।
अजीतसिंह ने अपनी राजकुमारी इंद्रकंवर का विवाह मुग़ल बादशाह फर्रूखशियर से कर दिया। यह अंतिम हिन्दू राजकुमारी थी जिसका विवाह किसी मुग़ल बादशाह से हुआ था।
अजीतसिंह की हत्या उसके पुत्र बख्त सिंह ने कर दी।
अजीतसिंह के अंतिम संस्कार में कर पशु पक्षी जलकर मर गए।
अजीतसिंह की पुस्तकें
- अजीत सागर
- दुर्गा पाठ भाषा
- निर्वाण रा दूहा
दुर्गादास राठौड़
- इनका जन्म सालवा गांव जोधपुर में हुआ।
- इनके पिता का नाम आसकरण तथा माता का नाम नेत कंवर था।
- इनको जोधपुर की लुणेवा जागीर प्राप्त थी।
- अजीतसिंह को राजा बनाने के लिए दुर्गादास जी ने मुग़लों से 30 वर्षों (1678 – 1708 ई.) तक संघर्ष किया था। इसे मारवाड़ के राठौड़ों का 30 वर्षीय संघर्ष कहा जाता है।
- मेवाड़ में दुर्गादास जी को विजयपुर जागीर दी गई थी तथा कालांतर में दुर्गादास जी को रामपुरा का हाकिम बना दिया गया था।
- 1718 ई. में उज्जैन में इनकी मृत्यु हो गई। इनकी छतरी उज्जैन में है।
दुर्गादास जी की उपाधियाँ
- राठौड़ों का यूलिसेस – जेम्स टॉड के अनुसार
- राजपूताने का गैरीबाल्डी
- मारवाड़ का अनबिंधिया मोती
*** गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने अपनी पुस्तक “जोधपुर का इतिहस” के द्वितीय संस्करण को दुर्गादास जी को समर्पित किया था।
अभयसिंह (1724 – 49 ई.)
- इनके शासनकाल में खेजड़ली घटना (भाद्रपद शुक्ल दशमी विक्रमी संवत 1787) हुई।
दरबारी विद्वान्
- करणीदास – सूरज प्रकास (बिडद सिणगार)
- वीर भाण – राज रूपक
# इन पुस्तकों से अहमदाबाद युद्ध की जानकारी मिलती है। इस युद्ध में अभयसिंह ने गुजरात के गवर्नर सर बुलंद खां को हराया था।
मानसिंह (1803 – 43 ई.)
- जब मानसिंह जालौर में था तब देवनाथ ने उनके राजा बनने की भविष्यवाणी की थी।
- इसे “मारवाड़ का सन्यासी राजा” कहा जाता है।
- नाथ संप्रदाय के लिए जोधपुर में महामंदिर बनाया गया।
- इसने “नाथ चरित्र” नामक पुस्तक लिखी।
- मेहरानगढ़ किले में “मान पुस्तक प्रकाश” नामक पुस्तकालय की स्थापना की।
- 1818 ई. में इसने अंग्रेजों के साथ संधि कर ली।
- 1827 ई. में नागपुर के राजा आपा साहिब भौंसले को अंग्रेजों के खिलाफ जोधपुर में शरण दी।
- 1832 ई. में गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बेंटिक के अजमेर दरबार का बहिष्कार किया।
दरबारी विद्वान्
- कविराजा बांकीदास जी – “बांकीदास री ख्यात”, “मान जसो मंडन”, “दातार बावनी”, “कुकवि बत्तीसी”