आपका हमारी वेबसाइट rajasthanigyan.com में स्वागत है। आज हम नाडौल और जालौर का इतिहास के बारे में विस्तार से अध्ययन करेंगे। हमारी इस वेबसाइट पर आपको राजस्थान राज्य की सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में आने वाले महत्वपूर्ण Topics की आसान और सरल भाषा में जानकारी मिलती है।
लक्ष्मणराज
- 960 ई. में इसने नाडौल में चौहान राज्य की स्थापना की तथा नाडौल में अपनी कुलदेवी आशापुरा माता का मंदिर बनवाया।
केल्हण
- इसने कायन्द्रा के युद्ध में भाग लिया था।
- अपनी दो राजकुमारियों गीगा देवी श्रृंगार देवी का विवाह आबू के परमार राजा धारावर्ष से किया था।
- इसके भाई कीर्तिपाल ने जालौर में चौहान राज्य की स्थापना की।
♦ ऋषि जाबालि के कारण इसका नाम जाबालीपुर था।
♦ जाल के पेड़ों की अधिकता के कारण इसका नाम जालौर पड़ा।
♦ जालौर का किला सोनगिरि (सुवर्णगिरि) पहाड़ी पर स्थित है। अतः जालौर के चौहान सोनगरा चौहान कहलाते थे।
कीर्तिपाल
- इसने कायन्द्रा के युद्ध में भाग लिया था।
- 1179 ई. में इसने मेवाड़ के राजा सामंतसिंह को हराया।
- 1181 ई. में कुन्तपाल परमार को हराकर इसने जालौर में चौहान राज्य की स्थापना की।
- सुंधा अभिलेख में कीर्तिपाल को राजेश्वर कहा गया है।
- “नैणसी री ख्यात” के अनुसार कीर्तिपाल एक महान राजा था।
समर सिंह
- इसने जालौर में परकोटा, शस्त्रागार तथा कोषागार बनवाया।
- इसने अपनी राजकुमारी लीला देवी का विवाह गुजरात के चालुक्य राजा भीम II से किया।
उदय सिंह
- इसने इल्तुतमिश से मंडौर तथा नाडौल छीन लिए थे।
- इसने गुजरात के लवण प्रसाद को हराया।
चाचिग देव
- यह नसीरुद्दीन महमूद तथा बलबन का समकालीन था। इसके समय में ये दोनों जालौर पर आक्रमण का साहस नहीं कर सके।
- इनको महाराजाधिराज की उपाधि थी।
सामंत सिंह
- 1291 ई. में जलालुद्दीन खिलजी ने जालौर पर आक्रमण किया तथा वह सांचौर तक पहुँच गया था लेकिन सामंत सिंह ने अपने सेनापति सारंगदेव बघेला की सहायता से इसे रोक दिया।
कान्हड देव
यह जालौर के सभी शासकों में सबसे महत्वपूर्ण शासक था।
इनके समय में अलाउद्दीन खिलजी का सिवाणा (1308 ई.) और जालौर (1311 ई.) पर आक्रमण किये।
आक्रमण के कारण
- अलाउद्दीन खिलजी अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था। वह पहले ही रणथम्भौर (1301 ई.) तथा चित्तौड़ (1303 ई.) पर अधिकार कर चुका था।
जालौर का किला दिल्ली से गुजरात तथा दक्षिण भारत के व्यापारिक मार्ग पर स्थित था। - गुजरात आक्रमण के दौरान अलाउद्दीन को जालौर से गुजरने का रास्ता नहीं दिया गया था।
- जब अलाउद्दीन की सेना गुजरात से लौट रही थी तब जालौर के सेनापति जैता देवड़ा ने उस पर आक्रमण किया तथा उससे सोमनाथ मंदिर के शिवलिंग के टुकड़े छीन लिए।
- 1305 ई. में आइन – उल – मुल्क मुल्तानी ने जालौर पर आक्रमण किया तथा तथा वह कनाहडदेव को समझाकर दिल्ली ले गया लेकिन वहां पर कनाहडदेव ने अलाउद्दीन की युद्ध की चुनौती को स्वीकार कर लिया था।
- नैणसी के अनुसार युद्ध का कारण फिरोजा का वीरमदेव (कनाहडदेव का पुत्र) के प्रति आकर्षण था।
⇒ इस समय सिवाणा का किला सातल देव तथा सोम (कनाहडदेव के भतीजे) के पास था।
⇒ भायल सैनिक ने सातल तथा सोम से विश्वासघात किया।
⇒ 1308 ई. में सातल तथा सोम के नेतृत्व में सिवाणा का पहला साका हुआ। अलाउद्दीन ने सिवाणा पर अधिकार कर लिया तथा इसका नाम बदलकर खैराबाद कर दिया और इसे अपने एक सेनापति कमालुद्दीन गुर्ग को सौंपा।
⇒ नाहर खान नामक तुर्क सेनापति इस युद्ध में लड़ता हुआ मारा गया।
⇒ सिवाणा को “जालौर की चाबी” कहा जाता था।
मलकाना का युद्ध
कनाहडदेव ने तुर्क सेना को हराया तथा तुर्क सेनापति शम्स खान को गिरफ्तार कर लिया।
⇒ बिका दहिया ने कनाहडदेव से विश्वासघात किया और इसको इनकी पत्नी हीरादे ने मार दिया।
⇒ कनाहडदेव तथा वीरमदेव के नेतृत्व में जालौर में साका किया गया। अलाउद्दीन ने जालौर पर अधिकार कर लिया तथा इसका नाम बदलकर जलालाबाद कर दिया। इसने यहां “अलाई मस्जिद” (तोपखाना मस्जिद) का निर्माण करवाया।