आपका हमारी वेबसाइट rajasthanigyan.com में स्वागत है। आज हम उच्च न्यायालय High Court से सम्बंधित विभिन्न संवैधानिक उपबंधों का विस्तार से अध्ययन करेंगे। हमारी इस वेबसाइट पर आपको राजस्थान राज्य की सभी exams में आने वाले महत्वपूर्ण Topics की आसान और सरल भाषा में जानकारी मिलती है। उच्च न्यायालय High Court सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के दृष्टि से राजव्यवस्था का एक बहुत ही महत्वपूर्ण Topic है जिसका हम अध्ययन करेंगे।
उच्च न्यायालय High Court
भारतीय एकल एकीकृत न्याय प्रणाली में उच्च न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय से नीचे परंतु अधीनस्थ न्यायालय से ऊपर कार्य करता है I भारत में उच्च न्यायालय की शुरुआत 1862 में हुई जब कोलकाता, मुंबई और मद्रास में उच्च न्यायालय स्थापित किए गए।
भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक राज्य के लिए एक उच्च न्यायालय होगा लेकिन 7वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1956 के अनुसार दो या दो से अधिक राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के लिए साझा उच्च न्यायालय हो सकता है I वर्तमान (2025) में देश में कुल 25 उच्च न्यायालय हैं जिनमें से 6 ऐसे हैं जिनका नियंत्रण एक से अधिक राज्य तथा केंद्र शासित प्रदेश में है I केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली का अपना उच्च न्यायालय है I
संविधान के भाग VI में अनुच्छेद 214 से 231 उच्च न्यायालय के संगठन, अधिकार क्षेत्र, शक्तियां तथा प्रक्रिया से संबंधित है I
संगठन
संविधान में उच्च न्यायालय के संगठन (क्षमता) के बारे में कोई स्थाई उपबंध नहीं है I यह राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर करता है I सामन्यत प्रत्येक उच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीश होते हैं जिनकी संख्या निर्धारित नहीं है I
नियुक्ति
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है I मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा संबंधित राज्य के राज्यपाल से परामर्श के बाद ही होती है और अन्य न्यायाधीशों के लिए उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श भी आवश्यक है I
दूसरा जज केस (1993) – कोर्ट कोई व्यक्ति जो सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की राय के अनुरूप न हो उसे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त नहीं किया जा सकता I
तीसरा जज केस (1998) – उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति के संबंध में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के कॉलेजियम से परामर्श करना अनिवार्य है I
99वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2014 – कॉलेजियम प्रणाली को राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) नामक एक नए निकाय से बदल दिया I
चौथा जज केस (2015) – उच्चतम न्यायालय ने NJAC तथा 99वां संविधान संशोधन अधिनियम दोनों को असंवैधानिक और शून्य घोषित कर दिया और कॉलेजियम प्रणाली को फिर से लागू कर दिया I
योग्यताएं
वह भारत का नागरिक हो ।
उसने भारत के राज्य क्षेत्र में 10 वर्ष तक न्यायिक पद धारण किया हो या वह किसी उच्च न्यायालय में 10 वर्षों तक अधिवक्ता वकील रह चुका हो।
शपथ
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को शपथ राज्यपाल या इस उद्देश्य से राज्यपाल द्वारा नियुक्त कोई अन्य व्यक्ति दिलाता है।
वेतन और भत्ते
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन और भत्ते समय-समय पर संसद द्वारा निर्धारित होते हैं I
कार्यकाल
संविधान द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्यकाल निर्धारित नहीं किया गया इसके लिए निम्न प्रावधान है –
- 62 वर्ष की आयु तक
- राष्ट्रपति को त्यागपत्र लिखकर
- संसद की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा
- जब उच्चतम न्यायालय या अन्य किसी न्यायालय का न्यायाधीश बन जाए
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को साबित कदाचार के आधार पर राष्ट्रपति के आदेश द्वारा हटाया जा सकता है I राष्ट्रपति का यह आदेश संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत से पास होना अनिवार्य है आश्चर्यजनक रूप से आज तक किसी भी न्यायाधीश को महाभियोग प्रक्रिया के माध्यम से नहीं हटाया गया I
भारत का राष्ट्रपति उच्च न्यायालय का कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश, अतिरिक्त और कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश तथा सेवानिवृत न्यायाधीश को पुनः नियुक्त कर सकता है I
उच्च न्यायालय की स्वतंत्रता
उच्च न्यायालय के अपने कार्यों के प्रभावी संचालन के लिए इसका स्वतंत्र होना अति आवश्यक है इसे कार्यपालिका और विधायिका के अतिक्रमण या हस्तक्षेप से मुक्त होना चाहिए भारतीय संविधान में उच्च न्यायालय की स्वतंत्रता के लिए निम्नलिखित प्रावधान किये है –
(नियुक्ति) उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा न्यायपालिका के सदस्यों (उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश तथा उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश) के परामर्श से की जाती है I इसमें कार्यपालिका या अन्य राजनीतिक विचार का हस्तक्षेप नहीं होता I
(कार्यकाल की सुरक्षा) उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को कार्यकाल की सुरक्षा प्रदान की जाती है I उन्हें संविधान के उपबंधों के आधार पर ही हटाया जा सकता है (महाभियोग) I
(निश्चित सेवा शर्तें) उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन, भत्ते तथा विशेष अधिकार संसद द्वारा समय-समय पर निर्धारित किए जाते हैं I
(आचरण पर चर्चा नहीं) संविधान ने न्यायाधीशों के आचरण तथा कर्तव्य की संसद व राज्य विधान मंडल में चर्चा पर प्रतिबंध लगाया है I
(कार्यपालिका से पृथक्करण) कार्यपालिका अधिकारियों के पास न्यायिक शक्तियां नहीं होती I
सेवानिवृत्ति के बाद स्थाई देश को सर्वोच्च न्यायालय अन्य उच्च न्यायालय के अलावा भारत में किसी भी न्यायालय प्राधिकरण के समक्ष दलील की अनुमति नहीं है I
उच्च न्यायालय : शक्तियां तथा क्षेत्राधिकार
1. मूल क्षेत्राधिकार – इसके मूल क्षेत्राधिकार में मामले आते हैं जिनमें न्यायालय अपील किए बिना विवादों की सुनवाई कर सकता है I जैसे –
- न्यायालय कि अवमानना
- संसद और राज्य विधान मंडल सदस्यों के चुनाव संबंधी विवाद
- राजस्व मामले
- मौलिक अधिकार संबंधी मामले
- अधीनस्थ न्यायालयों से आने वाले मामले
2. अपीलीय क्षेत्राधिकार – यह मूल क्षेत्राधिकार से अधिक व्यापक है क्योंकि इसमें दीवानी और फौजदारी दोनों प्रकार के मामले शामिल है I यह अपने अधिकार क्षेत्र में कार्यरत अन्य न्यायालयों के विरुद्ध अपील सुनता है I
3. रिट क्षेत्राधिकार – संविधान का अनुच्छेद 226 नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा तथा अन्य उद्देश्य के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, उत्प्रेषण, निषेध तथा अधिकार पृच्छा रिट जारी करने का अधिकार देता है I
4. अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण – जिला न्यायाधीशों व न्यायिक सेवा में व्यक्तियों की नियुक्ति, स्थानांतरण तथा पदोन्नति राज्यपाल द्वारा उच्च न्यायालय के परामर्श द्वारा की जाती है I
यह किसी अधीनस्थ न्यायालय में लंबित पड़े मामलों को वापस ले सकता है I इसके कानून इसके क्षेत्राधिकार में आने वाले सभी अधीनस्थ न्यायालयों के लिए बाध्यकारी होते हैं I
5. पर्यवेक्षक क्षेत्राधिकार – सैन्य न्यायालयों या न्यायाधिकरण को छोड़कर इसके अधिकार क्षेत्र में आने वाले सभी अधीनस्थ न्यायालयों तथा न्यायाधिकरण पर इसका पर्यवेक्षक क्षेत्राधिकार है I
6. न्यायिक समीक्षा की शक्ति – केंद्र व राज्य सरकारों के विधायी अधिनियमों की न्यायिक समीक्षा की शक्ति न्यायालय के पास है I यह तीन आधारों पर विधायी अधिनियमों को असंवैधानिक घोषित कर सकता है I
- यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता हो
- यह संसदीय राज्य विधानमंडल के अधिकार क्षेत्र के बाहर का हो
- यह संवैधानिक प्रावधानों के प्रतिकूल हो