आपका हमारी वेबसाइट rajasthanigyan.com में स्वागत है। आज हम राजस्थान की जलवायु तथा इसे प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों के बारे में विस्तार से अध्ययन करेंगे। हमारी इस वेबसाइट पर आपको राजस्थान राज्य की सभी exams में आने वाले महत्वपूर्ण Topics की आसान और सरल भाषा में जानकारी मिलती है। राजस्थान की जलवायु परीक्षा दृष्टि राजस्थान भूगोल का एक बहुत ही महत्वपूर्ण Topic है। जिसका हम अध्ययन करेंगे।
राजस्थान की जलवायु पढ़ने से पहले हम जलवायु से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण शब्दावलियों का अध्ययन करेंगे जिससे जलवायु की अवधारणा समझने में आसानी होगी।
मानसून
मानसून शब्द अरबी भाषा के शब्द “मौसिन” से बना है जिसका अर्थ है – पवनों की दिशा। अतः पवनों या वायु की दिशा के साथ तापमान में परिवर्तन होना तथा वर्षा का होना मानसून कहलाता है। मानसून का अध्ययन करने वाला प्रथम विद्वान अलमसूदी था।
पवन
धरातल के समांतर चलने वाली हवाओं को पवन कहा जाता है। पवनों की दिशा वायुदाब द्वारा निर्धारित होती है क्योंकि यह उच्च वायुदाब से निम्न वायु दाब की ओर चलती है।
वायुदाब
किसी स्थान पर वायुमंडलीय दाब को वायुदाब कहते हैं। इसे बैरोमीटर से मापा जाता है। वायुदाब व तापमान में विपरीत संबंध होता है अर्थात जब तापमान अधिक होता है तो हवाएं ऊपर उठ जाती है और वायुदाब काम हो जाता है।
वायुमंडल
पृथ्वी के चारों ओर गैसों का आवरण होता है जिसे वायुमंडल कहा जाता है। इसकी निम्नलिखित परतें होती हैं।
मौसम
वायुमंडल में अल्पकालिक परिवर्तन अर्थात किसी स्थान की एक दिन की वायुमंडलीय दशा मौसम कहलाती है।
ऋतु
यह कुछ माह का वायुमंडलीय परिवर्तन होता है। अर्थात किसी स्थान की तीन से चार माह की वायुमंडलीय दशा का औसत ऋतु कहलाता है।
जलवायु
कम से कम 25 – 30 वर्ष से अधिक समय अवधि की वायुमंडलीय दशा का औसत उस स्थान की जलवायु कहलाता है।
कटिबंध
दो अक्षांशों के बीच का स्थान कटिबंध कहलाता है। पृथ्वी को विभिन्न कटिबंध में बांटा गया है जिसे नीचे दिए गए चित्र की सहायता से समझ सकते हैं –
राजस्थान की जलवायु
राजस्थान का अधिकांश भाग शीतोष्ण कटिबंध में आता है। कर्क रेखा राजस्थान के केवल दो जिलों डूंगरपुर और बांसवाड़ा से होकर गुजरती है। अतः बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिलों के भाग उष्ण कटिबंध में आते हैं और शेष संपूर्ण राजस्थान शीतोष्ण कटिबंध में आता है। राजस्थान कर्क रेखा के पास है अतः यहां के तापमान में अतिशयता व विविधता पाई जाती है। राजस्थान का उष्ण तथा शीतोष्ण दोनों कटिबंध में आने के कारण यहां की जलवायु उपोष्ण प्रकार की है। हालांकि राजस्थान में कई प्रकार की जलवायु पाई जाती हैं जो निम्न है –
- उष्ण एवं शुष्क जलवायु
- मानसूनी जलवायु
- शीतोष्ण कटिबंधीय जलवायु
- उपोष्ण जलवायु
राजस्थान की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक
अक्षांशीय स्थिति
राजस्थान का अधिकांश भाग शीतोष्ण कटिबंध में आता है। कर्क रेखा इसके केवल दो जिलों से गुजरती है।
अरावली पर्वतमाला
संपूर्ण राजस्थान में फैली यह पर्वतमाला अरब सागर से आने वाली मानसून पवनों के समांतर है। अतः यह अरब सागर की मानसूनी पवनें राजस्थान में वर्षा किए बिना उत्तर भारत की तरफ बढ़ जाती हैं।
बंगाल की खाड़ी से आने वाली मानसून पवनें अरावली से टकराकर राजस्थान के दक्षिणी – पूर्वी भाग में सर्वाधिक वर्षा करती हैं। अरावली के पश्चिम भाग में इन पवनों से वर्षा नहीं होती है। अतः यह भाग वृष्टिछाया प्रदेश कहलाता है। थार के मरुस्थल में अति न्यून वर्षा होती है।
मरुस्थल / धरातल की बनावट
राजस्थान के पश्चिमी भाग में थार का मरुस्थल है जो गर्मियों में अत्यधिक गर्म तथा सर्दियों में अत्यधिक ठंडा रहता है।
समुद्र तट से दूरी
राजस्थान की समुद्र तट से दूरी अधिक होने के कारण यहां की हवा में आर्द्रता नहीं होती है और शुष्क हवा रहती है जो गर्मियों में अत्यधिक गर्म तथा सर्दियों में अत्यधिक ठंड का आभास करवाती है।
समुद्र तल से ऊंचाई
राजस्थान के अधिकांश भाग की समुद्र तल से औसत ऊंचाई 370 मीटर से कम है। अतः यहां तापमान थोड़ा अधिक रहता है क्योंकि समुद्र तल से ऊंचाई बढ़ाने पर तापमान में गिरावट आती है। प्रति 165 मीटर की ऊंचाई बढ़ाने पर तापमान में लगभग 1 डिग्री सेंटीग्रेड की गिरावट होती है। वहीं धरातल में प्रति 32 मी बढ़ाने पर तापमान लगभग 1 डिग्री सेंटीग्रेड तक बढ़ जाता है।
प्राकृतिक वनस्पति की कमी
जहां सघन वनस्पति होती है वहां की जलवायु में आर्द्रता अधिक होती है। पश्चिम में राजस्थान में वनस्पति की कमी होने के कारण तापमान में अधिकता व आर्द्रता में कमी पाई जाती है।
राजस्थान के जलवायु प्रदेश
राजस्थान की जलवायु संपूर्ण राजस्थान में एक समान नहीं है। इसमें अत्यधिक विविधता पाई जाती है। राजस्थान की जलवायु की इसी विविधता को ध्यान में रखते हुए संपूर्ण राजस्थान की जलवायु को पांच प्रमुख जलवायु क्षेत्रों में बांटा जा सकता है।
1. शुष्क जलवायु प्रदेश
यहां की जलवायु शुष्क, उष्ण तथा मरुस्थलीय प्रकार की होती है क्योंकि यहां औसत वार्षिक वर्षा की मात्र 10 से 20 सेंटीमीटर होती है। इस क्षेत्र में वनस्पति का अभाव होता है तथा कई विशेष प्रकार की घास पाई जाती है। इस क्षेत्र में जैसलमेर, बाड़मेर, बालोतरा, बीकानेर तथा जोधपुर का पश्चिमी भाग और गंगानगर का दक्षिणी भाग आता है। यहां तापमान ग्रीष्म ऋतु में 35 डिग्री से अधिक जबकि शीत ऋतु में 10 से 15 डिग्री तक रहता है।
2. अर्द्ध शुष्क जलवायु प्रदेश
यहां की जलवायु उष्ण तथा मरुस्थलीय प्रकार की होती है। यहां औसत वार्षिक वर्षा 20 से 40 सेंटीमीटर होती है। इस क्षेत्र में बबूल के वृक्ष तथा कंटीली झाड़ियां पाई जाती हैं। इस प्रदेश में पश्चिम भागों को छोड़कर सम्पूर्ण बीकानेर तथा जोधपुर, चुरु, झुन्झनू, सीकर, नागौर आदि के पश्चिमी भाग शामिल है। पाली व जालौर के पश्चिमी भाग के कुछ हिस्से इस प्रदेश में शामिल है।
3. उप आर्द्र जलवायु
यहां औसत वार्षिक वर्षा 40 से 60 सेमी होती है। यहां अल्प मात्रा में प्राकृतिक वनस्पति पाई जाती है। इस क्षेत्र में अलवर, खैरथल – तिजारा, अजमेर, जयपुर जिले तथा सीकर, झुंझुनू, पाली व जालौर जिलों के पूर्वी भाग शामिल होते हैं। टोंक, भीलवाड़ा, सिरोही के उत्तरी भाग भी इस प्रदेश का हिस्सा है।
4. आर्द्र जलवायु प्रदेश
इस जलवायु प्रदेश में औसत वार्षिक वर्षा 60 से 80 सेंटीमीटर होती है। यहां प्राकृतिक वनस्पति तथा नीम, शीशम, जामुन आदि के वृक्ष पाए जाते हैं। इस क्षेत्र में भरतपुर, डीग, धौलपुर, सवाई माधोपुर, कोटा, बूंदी तथा टोंक का कुछ हिस्सा शामिल है।
5. अति आर्द्र जलवायु प्रदेश
इस जलवायु प्रदेश में औसत वार्षिक वर्षा 80 से 150 सेंटीमीटर होती है। इस प्रदेश में उदयपुर, सलूंबर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, झालावाड़, सिरोही का कुछ हिस्सा आदि जिले शामिल है। माउंट आबू में राज्य की सर्वाधिक वर्षा दर्ज की गई है।